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धर्म/आध्यात्म (11)
संस्कारों के पर्व लोहड़ी का है खास महत्व
Written by Scanner India News Networkलोहड़ी , यह त्योहार उत्तर भारत के प्रसिद्ध पर्वों में से एक है। लेकिन पंजाब और हरियाणा में इस पर्व की रौनक देखने लायक होती है। इस त्योहार में न केवल बच्चे बल्कि बुजुर्ग भी भरपूर सहयोग करते हैं, तो आइए हम आपको लोहड़ी से जुड़े पारंपरिक कहानियों और रिवाजों के बारे में कुछ खास जानकारी देते हैं। लोहड़ी हर साल मकर संक्रांति से एक दिन पहले रात को धूमधाम से मनायी जाती है। यह त्यौहार हर साल 13 जनवरी को मनाया जाता है। कभी-कभी मुहूर्त के कारण लोहड़ी 14 जनवरी को भी मनायी जाती है। इस साल लोहड़ी पूरे भारत में 13 जनवरी यानी आज मनायी जा रही है। लोहड़ी मुख्य रूप से सिख समुदाय का त्योहार माना जाता है लेकिन आजकल पूरे भारत में मनाया जाता है। भारत में लोहड़ी पंजाब और हरियाणा में खासतौर से मनायी जाती है।
महाष्टमी के दिन करें मां महागौरी की पूजा, जानें विधि,मंत्र एवं महत्व
Written by Scanner India News Networkमां दुर्गा का आठवां स्वरूप महागौरी हैं, जिसे महाष्टमी या दुर्गाष्टमी के नाम से जानते हैं. इस दिन इनकी पूजा की जाती है ताकि हमें हर पाप से मुक्ति मिले. कई वर्षों तक कठोर तप के कारण मां पार्वती का रंग गौर वर्ण का हो गया था, भगवान शिव ने उनको गौर वर्ण का वरदान दिया, जिससे वो महागौरी कहलाईं. आज के दिन माता महागौरी की आराधना करने से व्यक्ति को सौभाग्य की प्राप्ति होती है, साथ ही सुख-समृद्धि में कोई कमी नहीं होती है. महाष्टमी के दिन कन्या पूजन का विधान है,हा जाता है कि कन्याएं मां दुर्गा का साक्षात् स्वरूप होती हैं, इसलिए नवरात्रि के अष्टमी को कन्या पूजा की जाती है. ऐसे में चलिए जानते हैं कि आखिर कैसे करें मां की पूजा.......
कौन हैं महागौरी
नवदुर्गा का आठवां स्वरूप हैं महागौरी, भगवान शिव की प्राप्ति के लिए इन्होंने कठोर पूजा की थी, जिससे इनका शरीर काला पड़ गया था. इनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने इनको दर्शन देकर से मां का शरीर कांतिमय कर दिया तब से इनका नाम महागौरी पड़ा. माना जाता है कि माता सीता ने श्री राम की प्राप्ति के लिए महागौरी की पूजा की थी. महागौरी श्वेत वर्ण की हैं और सफेद रंग मैं इनका ध्यान करना बहुत लाभकारी होता है. विवाह संबंधी तमाम बाधाओं के निवारण में इनकी पूजा अचूक होती है. ज्योतिष में इनका संबंध शुक्र ग्रह से माना जाता है.
कैसे करें महागौरी की पूजा
महागौरी की पूजा पीले कपड़े पहनकर करें, इसके बाद मां के सामने दीपक जलाएं और उनका ध्यान करें. इसके बाद सफेद या पीले फूल चढ़ाएं औऱ उनके मंत्रों का जाप करें, इसके बाद मध्य रात्रि में इनकी पूजा करें.
अष्टमी पर कन्याओं को भोजन कराने की परंपरा
नवरात्रि नारी शक्ति के और कन्याओं के सम्मान का भी पर्व है. इसलिए नवरात्रि में कुंवारी कन्याओं को पूजने और भोजन कराने की परंपरा भी है. हालांकि नवरात्रि में हर दिन कन्याओं के पूजा की परंपरा है, लेकिन अष्टमी और नवमी को कन्याओं की पूजा जरूर की जाती है. 2 वर्ष से लेकर 11 वर्ष तक की कन्या की पूजा का विधान बताया है. अलग-अलग उम्र की कन्या देवी के अलग-अलग रूप को दर्शाती है.
मां महागौरी की पूजा का महत्व
जीवन में छाए संकट के बादलों को दूर करने और पापों से मुक्ति के लिए मां महागौरी की पूजा की जाती है. महागौरी की आराधना से व्यक्ति को सुख-समृद्धि के साथ सौभाग्य भी प्राप्त होता है.
मां महागौरी बीज मंत्र
श्री क्लीं ह्रीं वरदायै नम:।
महागौरी मंत्र
1. माहेश्वरी वृष आरूढ़ कौमारी शिखिवाहना।
श्वेत रूप धरा देवी ईश्वरी वृष वाहना।।
- ओम देवी महागौर्यै नमः।
उत्सव है जीवन आनंद की खोज धर्म
Written by Scanner India News Networkभारत के बुद्धों, संतों, तीर्थंकरों की मौलिक देन यह है कि उन सबने जीवन को आंतरिक सुख यानी आनंद की खोज बताया है। चूंकि धर्म बुनियादी रूप से जीवन से जुड़ा तत्व है, इसलिए धर्म आनंद की ही खोज है।
पश्चिम की मौलिक देन यह है कि जीवन बाहरी सुख की खोज है। पश्चिम कहता है कि सुख बाहर से मिलता है। पूरब जानता है, सुख बाहर से मिल नहीं सकता, क्योंकि सुख का स्रोत भीतर है। आनंद का स्रोत भीतर ही है। पश्चिम की धारणा है- पहले बाहरी सुख मिलेगा, फिर आनंद मिलेगा। भारत की खोज है- पहले आनंद मिलेगा, तब बाहरी सुख मिलेगा।पश्चिम की खोज उपयोगितावादी दृष्टि पर आधारित है यानी कोई चीज कितनी उपयोगी है। पश्चिम किसी व्यक्ति का मूल्यांकन इस बात से करता है कि उसका उपयोग कितना है। वहां जब तक आप धन अर्जन में सक्षम हैं, तभी तक आपका मूल्य है। भारत की दृष्टि उपयोगितावादी नहीं है। भारत की समझ कहती है कि हमें आनंद ही सुख तक ले जाता है। इसलिए, हम आज भी बुजुर्गों को मूल्य देते हैं। भारत में आज भी कहीं न कहीं आनंदवादी दृष्टि बची है।इसे एक उदाहरण से समझें। पश्चिमी मनस्विद स्टीफन आर. कावे ने इस बात पर आश्चर्य प्रकट किया है कि लोगों की दृष्टि ‘आउटसाइड इन’ की है, अर्थात जो भी मिलेगा, पहले बाहर से मिलेगा, फिर भीतर आएगा। उन्होंने भारतीय मनस्विदों की इस खोज को ठीक ठहराया है कि पहले भीतर बदलेगा, फिर बाहर बदलेगा। पश्चिम कहता है कि परिस्थितियां बदल जाएं तो मनःस्थिति बदल जाएगी। पूरब की मनीषा कहती है- अगर मनःस्थिति बदले तो परिस्थितियां बदल जाएंगी। पहले अंधेरा दूर करो, फिर प्रकाश आएगा- ऐसा पश्चिम का सोचना है। भारत कहता है, प्रकाश लाओ, तो अंधेरा स्वतः भाग जाएगा। पूरब और पश्चिम की धारणा का यह मौलिक भेद है।पतंजलि का जो अष्टांगयोग है- यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि, शुरुआत तो उसकी भी यम यानी परिस्थितियों की शुद्धि से ही होती है। फिर आता है नियम यानी मनःस्थिति का शुद्धीकरण। इसके बाद के छह चरण भीतरी शुद्धि के हैं।पांचवें सिख गुरु अर्जुनदेवजी कहते हैं- आनंद भया सुख पाइया, मिलि गुरु गोविन्द। यानी, पहले आनंद मिला, फिर उसके पीछे सुख आया। और, आनंद तब आता है जब कोई गुरु और गोविन्द से मिलता है। गुरु और गोविन्द से मिलकर ही कोई अपनी भीतरी संपदा को जान सकता है। लेकिन पश्चिम इससे राज़ी नहीं है। वह कहता है- पहले मकान बनाओ, कार खरीदो, दूसरी सुख-सुविधाएं इकट्ठा करो, फिर आनंद होगा। पश्चिम की दृष्टि सिकंदरी है, पूरब की कलंदरी। कलंदर सुख की खोज बाहर नहीं, अंदर करता है। भारत की दृष्टि आनंदवादी है।उपयोगितावादी दृष्टि व्यक्ति को आनंद में नहीं ले जा सकती। यह असम्यक दृष्टि है। सम्यक दृष्टि का अर्थ है- आनंद तुम्हारा साध्य है, उत्सव तुम्हारा साध्य है। उपयोगिता और सफलता को साध्य समझना असम्यक दृष्टि है। असली बात है- आनंदित कैसे हों! सम्यक दृष्टि का साध्य यही हो सकता है। ध्यान रहे कि आनंद का भौतिकता से विरोध नहीं है। इस अंतर को ठीक से समझ लें। भौतिकता साधन है आनंद का, यह सम्यक दृष्टि है। लेकिन भौतिकता, उपयोगिता और कामयाबी ही यदि साध्य हो जाए, तो यह असम्यक दृष्टि है।नाच-गान, रास और लीला में श्रीकृष्ण का इतना समय इसलिए व्यतीत होता है कि आनंद ही हमारा पथ है। चंडीदास भी कहते हैं- आनंद आमार गोत्र, उत्सव आमार जाति। आनंद हमारा बीज है, उत्सव उसका फूल है। पूरब के सभी संतों ने आनंद को ही साध्य माना है। आनंद की सम्यक दृष्टि ही धार्मिकता का पहला सोपान है। धन और शक्ति का उपयोग है, लेकिन वे साध्य नहीं हैं। इसलिए, हमारी दृष्टि आनंदवादी होनी चाहिए।महत्वाकांक्षा भड़काने वाले पश्चिमी साहित्य के प्रभाव में हम भी अपने बच्चों से कहना शुरू कर देते हैं- कामयाबी चाहिए, सफलता चाहिए। लेकिन सफलता का हमारा पैमाना क्या है? हम समझ हैं कि बच्चा अच्छा धन कमाने लगे, अच्छी पोजीशन पर पहुंच जाए तो वह कामयाब है। वास्तव में, यह छद्म कामयाबी है। धीरे-धीरे पश्चिम भी इस बात पर राज़ी होता जा रहा है कि परिस्थिति बदलने से बहुत कुछ नहीं बदलता, केवल थोड़ा-सा बदलाव होता है।असली बात है, अंतस के बदलने की। वही असली कामयाबी है। रामरतन धन को जानना, उस परमसत्य को पाना है असली सफलता। जिस दिन व्यक्ति को यह कामयाबी मिलती है, उसी दिन वह असली आनंद को जानता है। भूटान जैसा देश भी आनंद को अपनी कामयाबी की कसौटी मानता है। यही आपके जीवन की भी कसौटी होनी चाहिए।
नहाय खाय के साथ लोक पर्व जीउतिया शुरू
Written by Scanner India News Networkपुत्र की लंबी आयु के लिए किया जाने वाला लोक पर्व जीउतिया 09सितम्बर 2020 बुधवार को नहाय-खाय से शुरू हो गया। कोरोना वायरस के वजह से महिलाओं ने घर में ही नहाय-खाय की परंपरा निभाई। स्नान के बाद जीउतिया व्रती महिलाओं ने कई सब्जियों का बना भोजन ग्रहण किया। व्रती गुरूवार को दिन भर उपवास करेंगी। बाजारों में जीउतिया पर्व को लेकर काफी चहल-पहल रही। जीउतिया पर्व को लेकर कई जगहों पर सब्जी के दाम आसमान छू रहे थे। जीउतिया पर्व पर नहाय-खाय के दिन झिंगी, सतपुतिया, कंदा, नोनी साग, बोड़ा सहित विभिन्न प्रकार की हरी सब्जी की लोगों ने खरीदारी की।जीउतिया पर्व को लेकर सब्जी के साथ-साथ फल की भी बिक्री में तेजी रही। बाजार में खरीदारों की संख्या बढ़ने के कारण बाजार गुलजार रहे।महिलाएं फूल, माला के साथ साड़ी व जीउतिया लॉकेट की खरीदारी करने में जुटी रहीं। निर्जला व्रत रहकर महिलाएं पुत्र की सलामती के लिए पूजा करेंगी। जीउतिया व्रत की शुरुआत छठ व्रत पूजा की तरह नहाय-खाय से होती है। स्नान और पूजा पाठ के बाद जीउतिया व्रत का संकल्प लिया जाता है। दूसरे दिन निर्जला व्रत रखकर संतान की लंबी उम्र की कामना करने के साथ पूजा होगी।पहले दिन नहाय-खाय के बाद दूसरे दिन की पूजा पाठ के लिए घरों में ही तैयारी पूरी हो गई है। शाम को घर की छत पर जीतवाहन भगवान की पूजा करने के बाद भगवान सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा।
सावन में भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए पूजा विधि
Written by Scanner India News Networkकहा जाता है हिन्दू धर्म के सभी देवी-देवताओं में सबसे आसान है भगवान शिव को प्रसन्न करना। सावन में भगवान शिव की प्रसन्नता हासिल करने के लिए इस विधि से करें पूजा। सावन सोमवार के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करें।इसके बाद शिव मंदिर में जाकर भगवान शिव का रुद्राभिषेक करने का विधान बताया गया है। हालाँकि इस बार जैसा कि मंदिर में रुद्राभिषेक करना मुमकिन नहीं है, ऐसे में आप घर पर ही उचित विधि से भगवान शिव का रुद्राभिषेक कर सकते हैं। बहुत ज़रूरी लगे तो आप फोन या वीडियो कॉल पर किसी जानकार पंडित या पुजारी से विधि जान सकते हैं। स दिन की पूजा में भगवान को बेलपत्र, धतूरा, गंगाजल और दूध अवश्य शामिल करें।शिवलिंग पर पंचामृत और बेलपत्र आदि चढ़ाएं।इसके अलावा शिवलिंग पर धतूरा, भांग, आलू, चन्दन, चावल इत्यादि समर्पित करें और पूजा में शामिल सभी को तिलक लगायें।भगवान शिव को घी-शक्कर का भोग लगायें।इसके बाद भगवान से अपनी मनोकामना मांगे और उनकी आरती करें।पूजा पूरी करने के बाद सभी को प्रसाद दें। सावन सोमवार के व्रत और पूजा में ज़रुर रखें इन बातों का ध्यान बहुत से लोग भगवान शिव की पूजा में केतकी के फूलों का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन बता दें कि ऐसा कहा जाता है कि, केतकी के फूल चढ़ाने से भगवान शिवजी नाराज होते हैं। इसलिए अगर आप भी अनजाने में ऐसा कर रहे हैं तो आगे से इस बात का ख्याल रखें। इसके अलावा एक और गलती जो लोग भगवान शिव की पूजा में कर बैठते हैं वो है उन्हें तुलसी चढ़ाने की, लेकिन भगवान शिव को तुलसी भी नहीं चढ़ानी चाहिए। इसके अलावा अगर आप भगवान शिव पर नारियल का पानी चढ़ाते हैं तो वो भी गलत माना गया है। ऐसा आगे से ना करें। भगवान शिव को जब भी जल चढ़ाएं किसी कांस्य या पीतल के बर्तन से ही जल चढ़ाएं।
इस महीने होने वाले चन्द्र ग्रहण का भी प्रभाव सभी राशियों पर पड़ेगा।
Written by Pankaj Kumar Pathakइस ग्रहण के चलते जहाँ कुछ लोग इस दौरान कोई नयी शिक्षा, कौशल या ज्ञान प्राप्त करने की कोशिश करेंगे, जो उनके करियर को एक नयी ऊँचाई प्रदान करेगी। तो वहीं कुछ लोगों को इस दौरान किये गए उनके प्रयास वांछित परिणाम नहीं दे सकेंगे, जिससे उनको निराशा और चिंता हो सकती है।स्वास्थ्य, परिवार आगे बढ़ाने की चाह, और कोई अन्य साइड बिज़नेस शुरू करने के लिहाज़ से यह ग्रहण कुछ लोगों के लिए शुभ साबित होगा।इसके अलावा आर्थिक मामलों पर ध्यान रखने की सलाह दी जाती है। लेकिन जो लोग विदेश में अवसरों की तलाश कर रहे हैं, इस दौरान उन्हें इसके बारे में कुछ सकारात्मक खबर मिल सकती है।यानि कि कुल-मिलाकर जुलाई का यह महीना अपने साथ बहुत कुछ लेकर आने वाला है। सलाह यही दी जाती है कि किसी भी बात से अन्यथा परेशान ना हों और जीवन के प्रति सकारात्मक रवैया रखें, आपको इस कठिन समय से जीत अवश्य मिलेगी।
गुप्त नवरात्रि का पर्व तंत्र साधना के लिए महत्वपूर्ण माना गया है
Written by Scanner India News Network
22 जून, सोमवार से गुप्त नवरात्रि की शुरुआत हो रही है, और 1 जुलाई 2020, बुधवार को इसकी समाप्ति होगी। इस नवरात्रि में विशेष प्रकार की इच्छापूर्ति और सिद्धि पाने के लिए पूजा एवं अनुष्ठान किए जाते हैं। तो यदि आप इस पूजा को और भी अधिक सफल बनाना चाहते हैं और जीवन में चल रही समस्याओं का समाधान चाहते हैं, गुप्त नवरात्रि का पर्व तंत्र साधना के लिए महत्वपूर्ण माना गया है। ऐसा माना जाता है कि जब भगवान विष्णु शयनकाल की अवधि के बीच रहते हैं, तब देवताओं की शक्तियां कमजोर पड़ने लगती हैं और पृथ्वी पर वरुण, यम आदि का प्रकोप बढ़ने लग जाता है। इन विपदाओं से बचाने के लिए ही गुप्त नवरात्रि में मां दुर्गा की पूजा की जाती है। इन दिनों में देवी दुर्गा की पूजा करने से बहुत लाभ भी मिलता है। साधक चमत्कारी शक्तियों को पाने के लिए गुप्त नवरात्रि के दौरान गुप्त सिद्धियों को अंजाम देते हैं। लोग किसी खास मनोकामना की प्राप्ति के लिए तंत्र साधना और अनेक उपाय करते हुए देवी को प्रसन्न करने कोशिश करते हैं। इस दौरान दुर्गा सप्तशती पाठ, दुर्गा चालीसा और दुर्गा सहस्त्रनाम का पाठ करना काफी फलदायी माना गया है। गुप्त नवरात्रि न केवल चमत्कारी शक्तियों, बल्कि धन, संतान सुख और शत्रु से मुक्ति दिलाने में भी कारगर है।
किन देवियों की करते हैं पूजा?
गुप्त नवरात्रि में प्रलय व् संहार के देवता कहे जाने वाले महादेव और मां काली की पूजा करने का विधान है। गुप्त नवरात्रि में निम्नलिखित 10 देवियों की पूजा की जाती है।
माँ काली
भुनेश्वरी माता
त्रिपुर सुंदरी
छिन्न माता
बगलामुखी देवी
कमला देवी
त्रिपुर भैरवी माता
धुमावती माँ
मातंगी
गुप्त नवरात्रि का महत्व
भागवत पुराण के अनुसार साल में आने वाली 2 गुप्त नवरात्रि में 10 महाविद्याओं की साधना की जाती है। यह नवरात्रि विशेषतौर पर तांत्रिक कियाएं, शक्ति साधनाएं, महाकाल आदि से संबंध रखने वाले लोगों के लिए खास महत्व रखती है। इस नवरात्रि में देवी भगवती के भक्त कठिन नियमों का पालन करते हुए व्रत और साधना करते हैं। लोग इस दौरान लंबी साधना कर के दुर्लभ शक्तियों को प्राप्त करने की कोशिश करते हैं।
ऐसे करें गुप्त नवरात्रि में देवी की पूजा
अन्य नवरात्रि की तरह ही गुप्त नवरात्रि में भी व्रत, पूजा-पाठ, उपवास किया जाता है। प्रतिपदा से नवमी तक उपवास रखा जाता है और सुबह-शाम पूजा की जाती है।
गुप्त नवरात्रि में नौ दिनों के लिए आप कलश की स्थापना कर सकते हैं।
यदि कलशस्थापना की हुई है, तो सुबह और शाम दोनों समय में अच्छे से स्नान करके साफ़ वस्त्र पहन लें।
अब माता की फल, फूल, धुप, दीप आदि से विधिवत पूजा करें। ध्यान रहे कि माँ के लिए सबसे उत्तम है लाल रंग का फूल।
भूलकर भी पूजा में मां को आक, मदार, दूब व् तुलसी न चढ़ाएं।
इसके बाद माता की आरती करें। इस दौरान मंत्र जाप, चालीसा या सप्तशती का पाठ करना काफी फलदायी माना गया है।
दोनों समय मां को भोग भी लगायें। यदि आप साधारण तरीके से पूजा कर रहे हैं, तो सबसे देवी के लिए उत्तम भोग है लौंग और बताशा।
देवी के सामने एक बड़ा घी का एकमुखी दीपक हमेशा जलाकर रखें।
विशेष इच्छापूर्ति के लिए गुप्त नवरात्रि में सुबह और शाम मां के “ऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडाय विच्चे” मंत्र का 108 बार जाप ज़रूर करें
पूरे नौ दिन तक अपना खान पान सात्विक रखें।
साप्ताहिक राशिफल (05 से 11 जुलाई 2020)
Written by Scanner India News Network
- मेष राशि: इस सप्ताह के पहले दो दिनों में मेष राशि के जातक एवं जातिकाओं को कुछ कामों को पूरा करने के लिए कहीं किसी यात्रा में जाना पड़ेगा।
- वृषभ राशि : इस सप्ताह के पहले दो दिनों में वृष राशि के जातक एवं जातिकाओं की आमदनी बढ़ने के संकेत करती रहेगी। आपकी कई ऐसी कोशिशें सफल रहेंगी।
- मिथुन राशि : इस सप्ताह के पहले दो दिनों में मिथुन राशि के जातक एवं जातिकाओं को किसी सामूहिक संस्था के साथ काम करने के अवसर रहेंगे। जो इस हेतु इच्छुक रहेंगे।
- कर्क राशि : इस सप्ताह के पहले दो दिनों में कर्क राशि के जातक एवं जातिकाओं की किस्मत और अच्छी बनी हुई रहेगी। आप अपने घर में आएं हुए किसी मेहमान की खातिरदारी करने में लगे हुए रहेंगे।
- सिंह राशि : इस सप्ताह के शुरू के दो दिनों से ही सिंह राशि के जातक एवं जातिकाओं के पास वक्त का कुछ आभाव सा बना हुआ रहेगा। जिससे आप परेशान रहेंगे।
- कन्या राशि : इस सप्ताह के पहले दो दिनों में कन्या राशि के जातक एवं जातिकाओं के कार्मिक क्षेत्रों में उनके अनुमान व उम्मीदों से अधिक कामयाबी की स्थिति रहेगी।
- तुला राशि : इस सप्ताह के पहले दो दिनों में तुला राशि के जातक एवं जातिकाओं को अपने किसी स्वजनों व संबंधी के आमंत्रण में पहुंचने की चिंता बनी हुई रहेगी।
- वृश्चिक राशि : इस सप्ताह के पहले दो दिनों में वृश्चिक राशि के ऐसे जातक एवं जातिका जो कि अध्ययन के क्षेत्रों में लगे हुए हैं, उन्हें अच्छी कामयाबी के संकेत रहेंगे।
- धनु राशि : इस सप्ताह के पहले दो दिनों में धनु राशि के जातक एवं जातिकाओं के विश्वास में अच्छा इजाफा रहेगा। आप वक्त के साथ चलते हुए रहेंगे।
- मकर राशि : इस सप्ताह के पहले दो दिनों में मकर राशि के जातक एवं जातिका अपने फर्ज को निभाने में बड़ी तत्परता से लगे हुए रहेंगे। आप धन निवेश व विदेश के कामों मे बढ़त बनाएगें।
- कुम्भ राशि : इस सप्ताह के पहले के दो दिनों में कुम्भ राशि के ऐसे जातक एवं जातिका जो कि भूमि खरीदने या भवन बनाने के लिए तैयार हैं, तो उन्हें सफलता मिलती रहेगी।
- मीन राशि : इस सप्ताह के पहले दो दिनों में मीन राशि के ऐसे जातक एवं जातिका जो कि अपने व्यवसाय को और बढ़ाना चाहते हैं, उन्हें लाभ रहेगा।
अंक ज्योतिष 2020 : मूलांक 4 ,मूलांक 5 और मूलांक 6 वालों के लिये अंकज्योतिषीय भविष्यवाणी
Written by Pankaj Kumar Pathak/ Ranchiअंक ज्योतिष 2020: मूलांक 4 वालों के लिये अंकज्योतिषीय भविष्यवाणी
अंक ज्योतिष 2020 की भविष्यवाणी के अनुसार यह वो साल है जिसका इंतजार आप लंबे समय से कर रहे थे। आप सर्वश्रेष्ठ हैं, यह साबित करने के लिये तैयार हो जाइये। आपका मूलांक आपको इस साल पूर्ण सहयोग करेगा। आप जो भी काम करेंगे, उसमें आपको सकारात्मक परिणाम और सफलता मिल सकती है। इस साल आप विदेश यात्रा पर भी जा सकते हैं और आपके कई नये दोस्त भी बन सकते हैं। आपका स्वामी ग्रह राहु है। आप अपने परिवार और दोस्तों के साथ इस साल अच्छा समय बिता पाएंगे। इसके साथ ही अपने करियर क्षेत्र में भी आप अच्छे सुधार कर पाएंगे और सफलता की सीढ़ियों पर चढ़ेंगे। ऐसे व्यक्ति से दूर रहें जो पहले आपका मित्र था और अब शत्रु है। ऐसा व्यक्ति समाज में आपकी छवि खराब कर सकता है। हालांकि आपको अति आत्मविश्वास से बचना चाहिये और चीजों को सकारात्मक बनाये रखने के लिये अपने बड़ों का सम्मान करना चाहिये। अत्यधिक आवेश में आकर अथवा दूसरों के व्यर्थ झगड़ों में किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप ना करें क्योंकि यह सब करना आपके लिए परेशानी का सबब बन सकता है और आपको इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है। अंक ज्योतिष राशिफल 2020 के अनुसार यदि आप राजनीति के क्षेत्र से संबंध रखते हैं तो इस साल आपको जबरदस्त सफलता मिल सकती है और आप ऊँचाइयों पर पहुँचेंगे। हालांकि याद रखें कि अति आत्मविश्वास कभी-कभी आदमी को बहुत ऊंचाई से नीचे गिरा देता है, इसलिए इसका शिकार होने से बचे रहेंगे तो यह साल आपके लिए बेहतर संभावनाएं लेकर आएगा।
अंक ज्योतिष 2020: मूलांक 5 वालों के लिये अंकज्योतिषीय भविष्यवाणी
अंक ज्योतिष 2020 की भविष्यवाणी के अनुसार आपका ग्रह स्वामी बुध है जो कि संचार का कारक ग्रह है। अंक ज्योतिष के अनुसार साल 2020 में आपका जीवन अच्छा रहेगा। इस मूलांक वाले जातकों की शादी की संभावनाएं इस साल बहुत ज्यादा हैं इसके साथ ही इस मूलांक के कुछ जातकों की मुलाकात किसी खास से इस साल हो सकती है और यह शख्स बहुत कम समय में ही आपके बहुत करीब आ जायेगा। अगर आप नया बिज़नेस शुरु करने के बारे में सोच रहे हैं या अपने बिज़नेस को विस्तार देने की सोच रहे हैं तो यह साल आपके लिये अच्छा है, नये कारोबार में आपको अच्छा मुनाफ़ा हो सकता है।शादीशुदा जातकों के लिये भी यह साल अच्छा रहेगा, अपने जीवन साथी के साथ आप अच्छा समय बिता पाएंगे और उनके साथ मिलकर कोई नया काम भी शुरु कर सकते हैं। पारिवारिक जीवन अच्छा रहेगा लेकिन बच्चों को लेकर आपको कुछ चिंताएं हो सकती हैं। उनकी संगति का ध्यान रखें क्योंकि गलत संगति के चलते हुए वे अपनी राह से भटक सकते हैं। इस साल आपकी संतान आपसे कोई बड़ी मांग कर सकती है जिसे पूरा करना आपके लिए मुश्किल हो सकता है।
यात्राओं की संभावना इस साल थोड़ी कम रहेगी और आपके खर्चे भी नियंत्रण में रहेंगे, जिसकी वजह से आप काफी हद तक इस साल में अनुकूलता हासिल करते हुए अपनी आर्थिक स्थिति को भी मजबूत बना पाएंगे। समाज में आपका मान और सम्मान दोनों बढ़ेंगे जिससे आपकी पर्सनैलिटी का विकास होगा। कुल मिलाकर देखा जाए तो साल 2020 मूलांक 5 वालों के लिये काफी सुखद और प्रोडेक्टिव रहेगा।
मूलांक 6 वालों के लिये अंकज्योतिषीय भविष्यवाणी
मूलांक 6 का स्वामी ग्रह शुक्र है। इसलिये इस मूलांक वाले लोग विलासिता और आराम करना बहुत पसंद करते हैं। हालांकि इस साल आपका व्यवहार थोड़ा अलग रहेगा, इस साल आप शानोशौकत से दूर जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं पर अपना ध्यान केंद्रित करेंगे। अंक ज्योतिष 2020 की भविष्यवाणी के अनुसार इस साल आप अपने परिवार के इर्दगिर्द रहना पसंद करेंगे, आपके परिवार को इस साल आपकी ज्यादा जरुरत होगी। उनके साथ समय बिताना ना केवल आपको सुकून देगा बल्कि आपको अपने कामों में आगे बढ़ कर चुनौतियों का सामना करने का साहस भी देगा।अंक ज्योतिष राशिफल 2020 के अनुसार आप घर के खर्चों पर भी पैसा खर्च कर सकते हैं और इसके साथ ही कुछ अन्य चीजों पर भी आपको खर्च करना पड़ सकता है। हालांकि इस साल आपको अपने खर्चों में कटौती करने की जरुरत है, आपके खर्चों की अधिकता के कारण आपको आर्थिक समस्याओं से गुजरना पड़ सकता है।इस मूलांक के नौकरी पेशा लोगों के लिये यह साल अच्छा रहेगा। आपको करियर के क्षेत्र में सफलता मिलने की इस साल पूरी उम्मीद है। हालांकि कार्यक्षेत्र में होने वाली राजनीति से आपको दूर रहने की सलाह दी जाती है। अपने सहकर्मियों के साथ अच्छा व्यवहार करें और वरिष्ठ अधिकारियों से अनुकूलता बनाए रखें तथा कार्यक्षेत्र में महिलाओं का सम्मान करें और यदि आप ऐसा करते हैं, तो उन्हीं के द्वारा आपको कार्यक्षेत्र में सफलता और ऊंचाइयां प्राप्त हो सकती है। इसके अतिरिक्त किसी महिला मित्र के माध्यम से आपको अच्छी सफलता हाथ लग सकती है।
अनूठी परंपरा : मन्नत पूरी होने पर आठ लोगों को रौंदती हुईं निकलती हैं सैंकड़ों गायें
Written by Scanner India Reporterउज्जैन। मध्यप्रदेश के उज्जैन जिले में आस्था के नाम पर वर्षों से अंधविश्वास की अनूठी परंपरा चली आ रही है। यकीन मानिए जिसके बारे में जानकर आप भी अंदर तक सिहर जाएंगे। उज्जैन जिले में स्थित ग्राम भिड़ावाद में मन्नत पूरी होने पर दिवाली के दूसरे दिन आठ लोग सैकड़ों गायों के नीचे लेट जाते हैं। उज्जैन से 75 किलोमीटर दूर स्थित बडनगर तहसील के गांव भिड़ावाद में आज अनूठी आस्था देखने को मिली। दिवाली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा पर लोहारियां गांव में 'गाय गौहरी' का पर्व मनाया जाता है जिसमें सुबह गाय का पूजन किया जाता है। पूजन के बाद लोग जमीन पर लेट गए और उनके ऊपर से गायें निकाली गई। मान्यता है की ऐसा करने से मन्नतें पूरी होती है और जिन लोगों की मन्नत पूरी हो जाती है वे भी ऐसा करते हैं। इस परम्परा के पीछे लोगों का मानना है की गाय में 33 करोड़ देवी-देवताओं का वास होता है। गाय के पैरों के नीचे आने से देवताओं का आशीर्वाद मिलता है। दीपावली के दूसरे दिन होने वाले इस आयोजन में जो लोग शामिल होते है उन्हें वर्षों पुरानी परम्परा का निर्वाह करना होता है। परम्परा अनुसार लोग पांच दिन तक उपवास करते हैं और दिपावली के एक दिन पहले गांव के मंदिर में रात गुजारते हैं। सुबह पूजन किया जाता है उसके बाद ढोल नगाड़ों के साथ गांव की परिक्रमा की जाती है। एक और गांव की सभी गायों को एकत्रित किया जाता है और दूसरी तरफ लोग जमीन पर लेटते हैं। कहते हैं गायों के ऊपर से गुजरने के बाद भी श्रद्धालुओं को खरोंच तक नहीं आती। चोट आने पर वे गव्य मूत्र एवं गोबर से प्राथमिक उपचार करते हैं। आदिवासी अंचल में इंसान जमीन पर लेटते हैं और गायें बिना गंभीर क्षति पहुंचाए इन पर से गुजर जाती हैं। ग्रामीण बताते हैं कि सालों पहले ग्राम के एक शख्स के यहां पुत्र होने की मन्नत के साथ ही यह गाय और गोहरी कार्यक्रम प्रारंभ हुआ था। तब से आस्था का यह पर्व ग्रामीण प्रति वर्ष मनाते हैं।
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धन के देवता कुबेर और माता लक्ष्मीं में क्या है अंतर जानिए
Written by Scanner India news networkधनतेरस से ही दिवाली का पर्व शुरू हो जाता है और धनतेरस से दिवाली तक भगवान कुबेर और माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है। लेकिन क्या आपको पता है कि माता लक्ष्मी और भगवान कुबेर अगल- अलग धन के देवता माने गए हैं। धनतेरस 25 अक्टूबर 2019 के दिन मनाई जाएगी। जिसमें कुबेर और माता लक्ष्मी को पूजा जाएगा। जिससे धन का स्थायित्व घर में बना रह सके तो आइए जानते हैं धन के देवता कुबेर और माता लक्ष्मीं में क्या है अंतर :-
भगवान कुबेर का धन कुबेर के संबंध में प्रचलित है कि उनके तीन पैर और आठ हाथ हैं। वह अपनी कुरुपता के लिए अति प्रसिद्ध हैं। उनकी जो भी मूर्तियां पाई जाती हैं। वह भी अधिकृष्ट और बेडोल है। धन के देवता कुबेर सदपद ब्राह्मण में राक्षस कहा गया है। इसके अलावा कुबेर को यक्ष भी कहा जाता है। यक्ष धन का रक्षक ही होता है। कुबेर का जो दिगपाल रूप है वह भी रक्षक और प्रहरी रूप को ही स्पष्ट करता है। कौटिल्य में भी खजानों में रक्षक के रूप में कुबेर की मूर्तियां रखने के बारे में लिखा है। इसलिए कुबेर को गढ़े हुए धन का रक्षक भी माना जाता है। जो दिगपाल और प्रहरी के रूप में गढ़े हुए धन और खजाने की रक्षा करते हैं। इसके अलावा इन्हें आभूषणों का देवता भी माना जाता है। भगवान कुबेर दिगपाल और प्रहरी के रूप में गढ़े हुए धन और खजाने की रक्षा करते हैं। इसके अलावा इन्हें आभूषणों का देवता भी माना जाता है। कुबेर के धन के साथ लोक मंगल का भाव प्रत्यक्ष नहीं है। यानी यह धन कुछ ही लोगों को प्राप्त होता है। हर किसी को यह धन प्राप्त नहीं हो सकता। इसलिए कुबेर को धन खजाने के रूप में स्थिर होता है। भगवान कुबेर की पूजा स्थायी धन के लिए की जाती है। क्योंकि भगवान कुबेर खजाने के रूप में स्थायी धन की प्राप्ति कराते हैं और माता लक्ष्मीं के द्वारा दिया गया धन गतिमान होता है। माता लक्ष्मी को धन की देवी माना जाता है और धनतेरस से लेकर दिवाली तक मां लक्ष्मी की पूजा अर्चना की जाती है। माता लक्ष्मी के साथ धन के मंगल का भाव भी जुड़ा हुआ है। क्योंकि माता लक्ष्मी के द्वारा दिया गया धन लोक कल्याण के लिए होता है और यदि कोई व्यक्ति धन के लालच में किसी दूसरे व्यक्ति को परेशान करता है तो माता लक्ष्मी उससे रुष्ट हो जाती हैं। माता लक्ष्मी का स्वरूप अत्यंत ही सुंदर है और इन्हें स्वच्छता पसंद है। माता लक्ष्मी के द्वारा दिया गया धन कभी भी स्थायी नहीं होता क्योंकि माता लक्ष्मी चंचला है। इसलिए यह चंचला नाम से भी प्रसिद्ध हैं। माता लक्ष्मी वहीं पर स्थिर रहती हैं जहां पर भगवान श्री हरि विष्णु का नाम लिया जाता हो। जो भी व्यक्ति सतकर्म और मेहनत करता है। माता लक्ष्मी उस पर अत्यंत ही प्रसन्न रहती हैं और उसी पर अपनी कृपा बरसाती है। चोरी खजाने, सट्टे आदि के लालच में जो व्यक्ति रहता है। उसके पास माता लक्ष्मी कभी भी नहीं आती। इसलिए पुराणों के अनुसार भी लोगों को सतकर्म करने के लिए कहा जाता है। जिससे मां लक्ष्मी का स्थायित्व हो सके। इसलिए दिवाली के दिन माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है। जिससे माता लक्ष्मी का घर में वास हो सके।