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विशेष (18)

आज कल तलाक होना एक आम बात हो गयी है| लोग पढ़े लिखें हैं खुद पर निर्भर हैं| कई बार ऐसा होता है कि पति पत्नी के विचार आपस में नहीं मिलते और तलाक लेना चाहते हैं लेकिन वो कोर्ट के चक्कर भी नही लगाना चाहते तो ऐसे में म्यूचुअल डिवोर्स उनके लिए काफी हेल्पफुल होता है|आइये जानते हैं कि आपसी तलाक लेते समय किन बातो का ध्यान रखें| इसके क्या फायदे और नुकसान हैं|म्यूचुअल डिवोर्स या आपसी सहमति से तलाक कैसे लिया जाता है उसकी प्रोसेस क्या होती है|

आपसी सहमती से तलाक या म्यूचुअल डिवोर्स का विवरण हिन्दू मैरिज एक्ट 1955 की धारा 13 B (1) और 13 B (2) में वर्णित है| आपसी सहमती से तलाक का केस फेमिली कोर्ट में फाइलकरना होता है| सबसे पहले ये सवाल उठता है कि किस जगह कोर्ट में केस डाला जाये| कोर्ट में केस करने के तीन क्षेत्र है–

  • पहला वह जगह जहा पर पति.पत्नी की शादी हुई हो
  • दूसरा - जहा पर पति.पत्नी पहली बार एक साथ रहे हो
  • और तीसरा जहा परपति.पत्नी आखरी बार एक साथ रहे हो|

इन तीन जगह के अलावा आप किसी और जगह की कोर्ट में केस नही कर सकते है| आपसी सहमति से तलाक लेने की भी कुछ शर्ते होती हैं|आपसी सहमती के तलाक लेने के लिए पहली शर्त कि पति.पत्नी कम से कम एक साल से अलग रह रहे होने चाहिए|
और वो एक साल कभी से भी माना जा सकता है चाहे वो समय शादी के अगले दिन से ही क्यों ना शुरू हुआ हो|अलग रहने से मतलब ये है की वे दोनों एक छत के नीचे नही रहे हो| ना ही एक फ्लैट में दो कमरों में रह सकते है लेकिन एक ही अपार्टमेंट में अलग फ्लैट में रह सकते है| मतलब ये कि पता अलग होना चाहिए|एक और जरूरी बात पति.पत्नी के बीच अलग रहते हुए भी शारीरिक सम्बन्ध नही बनने चाहिए| अगर अलग रहते हुए भी शारीरिक सम्बन्ध बन जाते है तो पिछला समय नही गिना जाएगा|

लेकिन अगर कुछ ऐसा कारण बन रहा है जिसमे आप एक साल की समय सीमा का पालन नहीं कर सकते या कर पा रहे हैं तो हिन्दू मैरिज एक्ट 1955 की धारा 14 के अंतर्गत आवेदन करके इस 1 साल की समय सीमा को समाप्त करवा सकते है| लेकिन इसके लिए आपको कोर्ट के सामने उचित कारण देने होते है|

 

आपसी सहमती से तलाक की दूसरी जरूरी शर्त है कि ये बिना किसी दबाव के होना चाहिए| मतलब ये कि दोनों पक्षों ने तलाक के लिए कोइ दबाव ना बनाया हो|

आइये अब जान लेते हैं की कोर्ट में केस करने की कानूनी प्रकिर्या कैसे शुरू करें|आपसी सहमती से तलाक दो चरणों में होता है| इसके लिए कोर्ट में दो बार आवेदन करने होते है| इन्हे फर्स्ट मोशन और सेकेण्ड मोशन कहते है| इसके बाद तलाक हो जाता है

अब समझ लेते हैं कि फर्स्ट मोशन क्या होता है|.

आपसी सहमती से तलाक के लिए कोर्ट में हिन्दू मैरिज एक्ट 1955 की धारा 13B (1) के अंतर्गत आवेदन होता है जिसे फर्स्ट मोशन कहते है| इसमे दोनों पक्षों का शादी से पहले व बाद का नाम, पता, उम्र व शादी का स्टेट्स लिखा होता है| स्टेट्स से मतलब शादी से पहले की वैवाहिक स्तिथि से है जैसे की कोई इस शादी से पहले तलाक शुदा या विदुर रहा हो तो|

 

इसके अवाला इसमे दोनों पक्षों के एफिडेविट भी होते है| जो ये कहते हैं कि किये गए आवेदनों के कथन सत्य है| इसके अलावा लिखा होता है की दोनों पक्ष बिना किसी दबाव के आपसी सहमती से तलाक ले रहे है इनमे आपस में रहने का कोई समझोता नही हो सका है|

अगर कोई शर्त या लेन. देन होती है तो उसका विवरण होता है| ज्यादातर केसों में अग्रीमेंट बना कर उसकी कॉपी साथ लगा दी जाती है|

डाक्यूमेंट्स की बात करे तो दोनों पक्षों के एक.एक पासपोर्ट साइज़ फोटो जो की आवेदन के पहले पेज पर लगते है, शादी का कार्ड या शादी की कोई फोटो, पहचान व पते के लिए आधार कार्ड या पहचान पत्र जिसमे वही पता हो जो की आवेदन में दिया है, अगर नही तो उसके लिए अलग से एफिडेविट आदि देना होता है

इसके अलावा जैसे की उपर विवरण दिया है अगर पति.पत्नी की शादी को एक साल नही हुआ है या फिर वो एक साल से अलग नही रह रहे है तो 1 साल के पर्थिकरण को समाप्त करने के लिए हिन्दू मैरिज एक्ट 1955 की धारा 14 में एप्लीकेशन जो की इस आवेदन के साथ लगा सकते है|

कोर्ट दोनों पक्षों की दलीलों को सुन कर दोनों की स्टेटमेंट को रिकॉर्ड करती है तथा दोनों पक्षों के हस्ताक्षर अंगूठो के निशान के साथ लिए जाते है, ताकि कोई बाद में मुकर नही सके तथा दोनो पक्षों को उनके वकील identified करते है की ये दोनों वही सही व्यक्ति यानि पति.पत्नी है|

दूसरा चरण

दूसरा आवेदन यानि Second Motion हिन्दू मैरिज एक्ट 1955 की धारा 13 B (2) के अंतर्गत किया जाता है| जिसमे दुबारा से शादी से पहले व बाद का नाम, पता, उम्र व शादी का स्टेट्स लिखा होता है| इसके अलावा फर्स्ट मोशन हो चुका है इसका विवरण होता है|

साथ ही आपसी सहमती का प्रमाण भी होना चाहिए कि पति-पत्नी अपनी सहमति से तलाक ले रहे हैं|जिला न्यायालय में उन्हें आधार पेश करना होता है कि वे एक वर्ष या उससे अधिक समय से अलग.अलग रह रहे हैं और वे एक साथ नहीं रह सके हैं तथा वे इस बात के लिए परस्पर सहमत हो गए हैं कि विवाह का विच्छेद हो जाना चाहिए।

इस अधिनियम की उपधारा (1) के अनुसार अगर तलाक के आवेदन दिए जाने के 6 महीने के बाद और उस तारीख के 18 महीने पहले दोनों पक्षकारो के द्वारा अर्जी वापस नहीं ली जानी चाहिए| इसके बाद कोर्ट तलाक की डिक्री पारित करेगा|

अगर डाक्यूमेंट्स की बात करे तो इस प्रोसेस में एक बार फिर से दोनों पक्षों के एक एक पासपोर्ट साइज़ फोटो आवेदन के पहले पेज पर शादी का कार्ड या शादी का फोटो, आधार कार्ड या पहचान पत्र लगाया जाता है तथा साथ में पहले आवेदन यानी फर्स्ट मोशन के आदेश की सर्टिफाइड कॉपी भी लगाई जाती है|

वैसे तो  दूसरा आवेदन  याने सेकेण्ड मोशन पहले आवेदन यानी फर्स्ट मोशन के आदेश के पारित होने से 6 महीने बाद कभी भी कर सकते है| लेकिन 18 महीने से ज्यादा नहीं होना चाहिए|

इसमें कोर्ट के पहले आवेदन के आदेश की सर्टिफाइड कॉपी लेने के समय को नही गिना जाता है| लेकिन अगर दोनों पक्ष आवेदन के लिए 6 महीने का इन्तजार नही करना चाहते है तो इसके लिए लेकिन CPCकी धारा 151 में एप्लीकेशन लगा कर  इस 6 महीने की समय सीमा को समाप्त करवा सकते है| ये एप्लीकेशन दूसरे आवेदन यानि सेकंड मोशन के साथ जाती है|

इसमें भी कोर्ट दोनों पक्षों की दलीलों को सुन कर दोनों की स्टेटमेंट को रिकॉर्ड करती है वकील दोनों पक्षों को Identified करते है और कोर्ट तलाक की दो डिग्रीया जारी करता है जो की दोनो पक्षों को एकएक ओरिजिनल डिग्री मिलती है| आप इस डिग्री की और भी सर्टिफाइड कॉपी कोर्ट में आवेदन करके ले सकते है|

इसके आलावा कुछ एनी बाते भी आपसे सहमति से तलाक के लिए जरूरी हैं|

पहली - आप अपने वकील वकील के द्वारा एक सैटलमेंट डीड यानी समझौता डीड MOU बनवा ले जिसमे समझोते की सभी बातें लिखी हो|

दूसरी जैसे की तलाक के बाद यदि बच्चा है तो उसकी कस्टडी किसके पास रहेगी|

तीसरी जरूरी बात पति द्वारा दी जाने वाली एकमुश्त राशि कितनी होगी, कब और कैसे उसकी पेमेंट की जायेगी|

चौथी जरूरी बात यदि दोनों पक्षों के बीच केस चल रहे हैं जैसे दहेज़, खर्चे यानी मेंटीनेंस धारा 125 CRPC काया घरेलु हिंसा का है तो उनको कब और कैसे विड्रो करना है|

पांचवी बात अगर पति और उसके अन्य घरवालों के खिलाफ कोई FIR धारा 498A /406 IPC में रजिस्टर्ड है तो उसे कैसे और कब हाई कोर्ट से खत्म करना है|

छठी बाद यदि कोई प्रॉपर्टी हैं तोए उनका बटवारा कैसे किया जाएगा? पत्नी को कितनी प्रॉपर्टी दी जाएगी?

सातवी बात पत्नी को उसका स्त्रीधन वापिस किया गया है या नहीं अगर करना है तो कब और कैसे किया जाएगा|

आठवी बात कोर्ट के खर्चो से सम्बन्धित जैसे FIR धारा 498A /406 IPC के केस को ख़त्म करवाना और आपसी सहमती से तलाक का खर्चा कौन उठाएगा| इन बातो पर भी सहमति बनाना जरूरी है|

नवी बात भविष्य में मेंटीनेंस या कोई और क्लेम किया जा सकता है या नहीं| अगर भविष्य में कोई क्लेम देना है या निरंतर पति को पत्नी को मेंटेनेंस देना है तो उसका जिक्र की कब और कैसे? ऐसी और भी बहुत सी बातें हैं? उपरोक्त सभी बातों का सेटलमेंट डीड में उल्लेख करना बहुत जरूरी है ताकि भविष्य में किसी भी पक्ष को किसी भी तरह की परेशानी का सामना ना करना पड़े|

10वी बात सब पैसो या कीमती समानए जेवर का लेन देन कोर्ट के सामने ही करे|

तो ये थी वो जरूरी बाते जो आपको ध्यान रखनी चाहिए|

 

कुछ और बाते हैं जो उन लोगो के लिए जानना जरूरी है जो आपसी सहमति से तालक चाहते हिं| जैसे कई बार ऐसा होता है कि फर्स्ट मोशन में ही काफी चीजे सैटल हो जाती हैं अगर ऐसे में पत्नी पैसा, मेंटीनेंस लेकर सेकण्ड मोशन में मुकर जाए तो पुरुष के क्या अधिकार होंगे|

तो ऐसे मेंअगर आपका समझोता लिखित में हुआ है और पत्नी फर्स्ट मोशन में पैसा ले कर सेकेण्ड मोशन में नही आये तो आप  हिन्दू मैरिज एक्ट 1955 की धारा धारा 13 B (2)  के अंतर्गत फाइल करे और आपनी पत्नी को कोर्ट के द्वारा नोटिस पहुचाये| तब आपकी पत्नी को कोर्ट में साइन करने के लिए आना पडेगा, अगर वो नही आती है तो आप सिविल कोर्ट में अपनी पत्नी के खिलाफ रिकवरी का केस फाइल करके अपना पैसा और कीमती समान वापस ले सकते है|

अब लास्ट में एक बहुत ही इम्पोर्टेंट सवाल का जवाब दे देते हैं, कि क्या तलाक के बाद दोनों पक्ष शादी कर सकते है या फिर इस आपसी सहमती के तलाक को खत्म भी कर सकते है?

जी हां अगर पति. पत्नी तलाक होने के बाद दुबारा पति.पत्नी की तरह रहना चाहते है तो हिन्दू मैरिज एक्ट 1955 की धारा 10 के अनुसार कोर्ट में आवेदन करके वे अपनी तलाक की डिग्री को खत्म करवा सकते है|

तो ये थी आपसी सहमति से तलाक लेने के विषय में जानकारी| उम्मीद है ये वीडियो आपको पसंद आया होगा| वीडियो देखने के लये बहुत बहुत धन्यवाद|

इस लेख में हम एक बहुत ही संवेदनशील मुद्दे पर बात करेंगे| मुद्दा है इच्छा मृत्यु और इच्छा मृत्यु के लिए की जाने वाली वसीयत|इसमे हम बताएँगे इच्छा मृत्यु क्या होती है उससे जुडे क्या कानून हैं और यदि कोइ इच्छा मृत्यु लेना चाहता है तो क्या वो इस बारे में पहले से ही डिक्लेयरकर सकता है|हर कोइ चाहता है कि वो इस दुनिया से चलते हाथ पैर चला जाए| यानी उसे कोइ ऐसी बीमारी ना हो जाए या ऐसी हालत ना हो जाए कि उसे दूसरो के ऊपर निर्भर होना पड़े| लेकिन फिर भी जीवन में कुछ भी हो सकता है| यदि कभी ऐसी स्थिति आ जाए वो व्यक्ति इच्छा मृत्यु यानी यूथेनेसिया का सहारा ले सकता है| हालांकिइच्छामृत्यु या मर्सी किलिंग पर दुनियाभर में बहस जारी है। इसमे क़ानून के अलावा मेडिकल और सामाजिक पहलू भी जुड़े हुए हैं। कई ऐसी बीमारियाँ हैं जिनके चलते कष्ट भोग रहे लोगो को इच्छामृत्यु की इजाज़त देने की मांग दुनिया भर में बढ़ रही है। इसके लिए लोग वसीयत यानी लिविंग विल भी करते हैं| लिविंग विल अपने जीवन को सम्मान के साथ साप्त करने बारे में होती है| यानी की किसी बुरी स्थति में यदि उनका जीवन दूसरो पर बोझ बन जाए और उकसा कोइ इलाज ना हो तो वो अपनी इच्छा से मृत्यु को चुन सके|

यूथेनेसियाके प्रकार

इच्छामृत्यु दो प्रकार की होती है पहली - निष्क्रिय इच्छामृत्यु व 2- सक्रिय इच्छामृत्यु

इन दोनों में अंतर है|निष्क्रिय इच्छामृत्यु में मरीज जीवन रक्षक प्रणाली पर अचेत अवस्था में रहता है। वह तकनीकी तौर पर जिंदा रहता है, लेकिन उसका शरीर और दिमाग दोनों निष्क्रिय होते हैं। वह तकनीकी तौर पर जिंदा रहता है, इस स्थिति में उसे उसके परिवार की मंजूरी पर इच्छामृत्यु दी जा सकती है।

वहीं सक्रिय इच्छामृत्यु के मामले में मरीज खुद इच्छा मृत्यु मांगता है। ऐसे मरीजों के ठीक होने की उम्मीद खत्म हो जाती है या उनकी बीमारी लाइलाज होती है और बहुत शाररिक पीड़ा में होता है ऐसे में उसकी इच्छा पर उसे मृत्यु दी जा सकती है|

कोर्ट देता है ईजाजत

इधर भारत में भी 9मार्च 2018 को इच्छा मृत्यु को सुप्रीम कोर्ट से मंजूरी मिल गई है। कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में व्यक्ति को सम्मान और अपनी मर्जी से मरने की इजाजत दी है| सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने फैसला सुनाते हुए शर्त के साथ इच्छा मृत्यु को मंजूरी दी है। इसको लेकर कोर्ट ने सुरक्षा उपाय की गाइडलाइन्स भी जारी की है। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका के जवाब में मरणासन्न व्यक्ति द्वारा इच्छामृत्यु के लिए लिखी गई वसीयत यानी लिविंग विल को भी मान्यता दी है|कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है की अगर कोई लिविंग विल करता भी है तो भी मेडिकल बोर्ड की राय के आधार पर ही जीवन रक्षक उपकरण हटाए जाएंगे।श्लिविंग विलश्  एक लिखित दस्तावेज होता है जिसमें कोई मरीज पहले से यह निर्देश देता है कि मरणासन्न स्थिति में पहुंचने या रजामंदी नहीं दे पाने की स्थिति में पहुंचने पर उसे किस तरह का इलाज दिया जाए। या फिर इलाज न देकर इच्छा मृत्युदे दी जाये और इस कार्य में वह अपनी सहमती देता है|

इच्छा मृत्यु और वसीयत 

हालांकि अभी इच्छा मृत्यु और लिविंग विल पर कानून में कोई प्रावधान नही है न ही इसके लिए कोई एक्ट बनाया गया है न ही कोई धारा या आर्टिकल हमारे सविधान में रखा गया है ये एक धारणा है जिनमे स्थितियों को देखते हुए कोर्ट एक निर्णय लेता है| ये कानून नहीं है | ऐसा हमारे देश में ही नहीं बल्कि विदेशो में भी है जो की लिखित कानून का हिस्सा न हो कर भी कानून बन गये है| मतलब लोगो अपने जीवन और मृत्यु के बारे में निर्णय कर सकते हैं जिन्हें कानूनी, सामाजिक और मेडिकल हालातो के नजरिये से देखते हुए मान्य किया जा सकता है|

इच्छा.मृत्यु के लिए आवेदन

आइये जानते हैं कि कोइ व्यक्ति यदि इच्छा.मृत्यु लेना चाहे तो कैसे ले| इच्छा.मृत्यु किसी को भी उसके हालत के अनुसार ही मिलती है| इसके लिए कोर्ट व मेडिकल बोर्ड अपनी इजाजत देता है| मेडिकल बोर्ड की इजाजत जरूरी होती है ताकि वो ये बयान दे की इस बीमारी का कोई इलाज नही है या ये बीमारी व्यक्ति को बहुत ही ज्यादा दर्द और परेशानी दे रही है और इससे छुटकारा केवल मृत्यु ही है|

और भी कुछ बाते हैं जो जरूरी हैं

1-अगर कोई व्यक्ति पहले से लिविंग विल कर चुका है और उसमे अपनी बीमारी या ऐसे हालत होने का ब्यौरा दे चुका है तो उसकी इच्छा के अनुसार मेडिकल बोर्ड द्वारा इच्छामृत्यु दे दी जाएगी

2- अगर वह व्यक्ति सचेत है यानी कि वो बोल और समझ सकता है और किसी गम्भीर बीमारी से पीड़ित है तो उसे कोर्ट से अनुमति लेकर ही इच्छा मृत्यु दी जाएगी| ऐसे में कोर्ट मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट व राय पर ही अपना निर्णय लेता है|

3 - और अगर कोई व्यक्ति बिना लिविंग विल किये ही कोमा में चला जाता है या फिर किसी ऐसी बीमारी का शिकार हो जाता है जिसमे की वो अपनी सहमती देने में असमर्थ है तो ऐसे हालात में उस व्यक्ति के परिजन कोर्ट में उस व्यक्ति के लिए इच्छा.मृत्यु की याचना कर सकते है ऐसे में कोर्ट का निर्णय ही अंतिम निर्णय होगा| ऐसा अधिकार कोर्ट ने अपने पास इसलिए रखा है ताकि इस कानून का दुरूपयोग नही हो सके| ये इच्छा मृत्यु के लिए जरूरी कंडीशंस है|

कैसे दी जाती है इच्छा.मृत्यु

अब प्रश्न उठता है कि इच्छा.मृत्यु लेने का तरीका क्या होता है|इच्छा.मृत्यु व्यक्ति को इस प्रकार से दी जाती है जिससे उस व्यक्ति को किसी भी प्रकार का दर्द नही हो| ये काम डॉक्टर्स और एक्सपर्ट टीम की निगरानी में होता है| इसमे डॉक्टर इच्छा मृत्यु लेने की इच्छा रखने वाले व्यक्ति को ह्रदय गति रोकने वाला इंजेक्शन दिया जाता है जिससे उसे पीड़ा रहित मृत्यु संभव हो पाती है|

समय के साथ भारत में भी रिश्ते बदल रहे हैं इनमे एक रिश्ता है लिव-इन-रिलेशनशिप| मेट्रो कल्चर में पनपा ये रिश्ता अब छोटे शहरों में भी पहुँच गया है|हमसे अक्सर युवा लिव-इन-रिलेशनशिप से जुड़े बहुत सारे सवाल पूछते हें खास तौर से एक सवाल पूछा जाता कि क्या लिव-इन रिलेशन में रहने के लिए कोइ सर्टिफिकेट होता है|

आज हम इन्ही सब सवालों पर बात करेंगे कि लिव-इन रिलेशनशिप क्या होता है? क्या इसके कुछ कानून हैं| अगर लिव इन रिलेशनशिप में रहते हुए बच्चा पैदा हो जाए तो उसके माता पिता की संपत्ति में क्या अधिकार होंगे| क्या बच्चा पैदा हो जाने से लिव-इन-रिलेशनबदल कर पती पत्नी के रिश्ते में तब्दील हो जाएगा|लिव-इन-रिलेशनशिप में क्या रेप का चार्ज लग सकता है|आइये समझते हैं|

लिव इन रेलशनशिप का मतलब

पहले बात करते हैं कि लिव इन रेलशनशिप क्या होता है| लिव इन रिलेशन में कोइ भी दो बालिग़ लोग बिना शादी किये एक साथ रहने का फैसला करते हैं| दोनों स्वतन्त्र होते हैं| अगर इन्हें अलग होना होता है तो तलाक जैसी प्रोसेस की कोइ जरूरत नहीं होती|लिव-इन-रिलेशनशिप में रहने वाले कपल भारतीय कानून के अनुसार विवाहित नहीं माने जाते| भारत में अभी लिव-इन रिलेशनशिप के बारे में कोई ठोस कानून भी नहीं है | लेकिन रिश्ते हैं तो कानूनी समस्याएँ भी हैं,आये दिन लिव में रहने वाले कपल अपनी समस्यायों को लेकर लोग थाने और कोर्ट पहुंचते है| और कोर्ट महिला सुरक्षा और पुरुष अधिकारों की रक्षा से जुड़े कानून के हिसाब से लिव इन कपल के मसलो का निपटारा करता है|

लिव-इन रिलेशन और सर्टिफिकेट

बात करते हैं सबसे महत्वपूर्ण सवाल की| ये सवाल सबसे ज्यादा पूछा गया है|कि क्या लिव इन में रहने के लिए कोइ सर्टिफिकेट बनता है|तो जवाब है नहीं लिव-इन में रहने का कोइ कानूनी सर्टिफिकेट नहीं होता| ये दो बालिग़ लोगो का एक छत के नीचे रहने का फैसला है|लेकिन कई बार आपके ऐसे सवाल काफ्रोड लोग फ़ायदा उठा लेते हैं वो आपसे नोटरी पेपर पर समझौता पत्र बनाकर अच्छा खासा पैसा ऐंठ लेते हैं| वो कहते हैं कि अब आपका रिश्ता लीगल हो गया| लेकिन ये एकदम फर्जी बात है|

लिव-इन में रहें की शर्तें

लिव इन में रहने का कोइ कानून नहीं है लेकिन इसकी कुछ शर्ते जरूर हैं जैसे कि लिव-इन-रिलेशनशिप में रहने के लिए कपल का बालिग़ होना अनिवार्य है| यानी लडकी की उम्र 18 और लडके की उम्र 21 होनी चाहिए| क्योंकि अगर लडकी की उम्र कम हुई तो लडकी के घरवाले केस भी कर सकते हैं| लड़का भारी मुसीबत में पड सकता है| एक और बात कि लिव-इन-रिलेशनशिप का वैसे तो कोइ कानून नहीं है लेकिन अब ये घरेलु हिंसा कानून के दायरे में आता है| तो ज़रा संभल कर| क्योंकि लिव-इन-रेलशनशिप में कोइ बंधन नहीं होता| ये रिश्ता काफी अस्थिर सा होता है| ज़रा सी बात पर थाना कचेहरी हो सकते हैं|

लिव-इन-रिलेशनशिप की दूसरी जरूरी शर्त है दोनों को अविवाहित होना चाहिए या फिर तलाकशुदा या विधुर होना अनिवार्य है| अन्यथा इसे एडल्ट्री माना जाएगा|यानी कि आप एक वक्त में एक ही रिश्ते में रह सकते हैं|
लिव-इन-रिलेशनशिप में पैदा हुए बच्चे के अधिकार

अगर लिव-इन-रिलेशनशिप में रहते वक्त बच्चा पैदा हो जाए तो उसके क्या अधिकार होंगे और क्या तब उनका रिश्ता विवाहित कहलायेगा| तो जवाब है कि लिव-इन-रेलाशनशिप में पैदा होने वाले बच्चे को पिता का नाम और सम्पत्ति में पूरा हक मिलता ठीक वैसे ही जैसे एक जायज बच्चे को मिलता है|लेकिन आपको विवाहित नहीं माना जाएगा|

लिव-इन-रिलेशनशिप में लड़की के अधिकार

इन-इन-रिलेशनशिप का चौथा सवाल होता है कि क्या लिव-इनरिलेशनशिप टूट जाने के बाद लड़की कोर्ट से मेंटिनेंस ले सकती है जैसे एक पत्नी को मिलता है? तो इसका जवाब है बिल्कुल नहीं| लिव-इन-रिलेशनशिप में रहने वाली महिला घरेलु हिंसा मामले में पुरुष को सजा तो दिलवा सकती है लेकिन इस तरह के केस में वो पत्नी की तरह मेंटीनेंस नहीं ले सकती|इसी से जुडा एक और सवाल है की क्या इसमे लड़की लडके के ऊपर रेप का चार्ज लगा सकती है| जवाब थोड़ा अजीब है लेकिन सच है| लिव-इन-रिलेशनशिप जैसे रिश्तो का एक बड़ा आधार सेक्स और आपसी सामजस्य होता है| इसीलिए लिव-इन-रिलेशनशिप में रेप के चार्ज नहीं लगाए जा सकते है|

उम्मीद है कि लिव-इन से जुड़े कानूनी और इमोशनल मसलो पर आपको कुछ क्लियरेंस मिला होगा| ये रिश्ता जितना स्वच्छन्द और आजाद है उतना ही पेचीदा भी है| हमारी तो यही सलाह है कि लिव-इन-रिलेशनशिप मे जाने से पहले 100 बार विचार जरूर कीजिएगा|

अगर आप किसी केस में गवाह बनने जा रहे हैं या किसी केस में गवाही दे रहे हैं तो किन बातो का ध्यान रखना चाहिए| साथ ही ये भी बताएँगे किगवाही में क्या बोलना चाहिए और कब बोलना चाहिए और गवाह के रूप में आपके अधिकार क्या हैं|

सबसे पहले जब आप अपना बयान दर्ज करा रहे है तो ध्यान रखे की रीडर या पेशकार क्या लिख रहा है| दिल्ली में तो बयान टाइप करके लिखे जाते है तथा लिखते समय कोई गलती हो भी जाये तो उसको सुधारा जा सकता है पर बाकी राज्यों में हाथ से बयान लिखा जाता है इसलिए पूरा ध्यान रखिये कि क्या लिखा जा रहा है| उसे पढ़ने के लिए मांगिये|

दिल्ली में बयान होने के बाद गवाह उसके द्वारा दिए गए बयान को पढने के लिए दिये जाते है यह बयान टाइप होते हैं तो उन्हें पढ़ना आसान होता है| लेकिन जैसा कि हमने अभी बताया कि बाकी राज्यों जज का रीडर गवाह के बयान हाथ से लिखता है कई बार उनकी हैण्ड राइटिंग समझना बहुत मुश्किल हो जाता है तो अगर ऐसे में आपको कुछ समझ नहीं आ रहा तो तुरंत पूंछे कि क्या लिखा गया है| बेहतर तो ये होगा की बयान साफ व पड़ने लायक ही लिखवाए|

कई बार ऐसा होता है कि रीडर आपके द्वारा दिया गया बयान पढने के लिए नहीं देता|लेकिन आप कागज को लेकर अपने हस्ताक्षर करने से पहले पूरा पढ़ सकते है| अगर कोइ गलती है तो उसे सही करवा सकते है|

बयान दर्ज होने के बाद उसे पढ़ना गवाह का संवैधानिक और कानूनी अधिकार है! यदि रीडर आपके बयान या स्टेटमेंट पढने के लिए नहीं देता है तो आप इसकी शिकायत जज से कर सकते हैं|

गवाही देते समय एक महत्वपूर्ण बात ये है कि आप हमेशा जज की उपस्तिथि में ही अपने बयान दर्ज करवाएं|यदि जज उपस्थित नहीं तो आप अपने बयान दर्ज करने से मना करा सकते हैं ये आपका कानूनी अधिकार है| क्योंकि यही कानून है कि जज की उपस्तिथि में ही गवाह के बयान दर्ज किये जायेंगे|

बयान देने के तुरंत बाद आप उस बयान की कॉपी कोर्ट से फीस पे कर के उसी समय ले सकते है ये आपका अधिकार है|

अगर आप स्टेट केस में अदालत में गवाही देने के लिए आये है तो आप को पूरा अधिकार है की आप कोर्ट की गवाही से अपने पुराने बयानों को पढ सकते हैं और उनको याद कर सकते हैं ये आपका अधिकार है|

इसके अलावा अदालत में गवाही के बारे में और भी जरूरी बाते हैं जिनका आपको ध्यान रखना चाहिए|

अगर आप स्टेट केस में गवाह है और आपको अपने बयान दुबारा पढ़ने व याद करने के लिए उसकी कॉपी और अगली तारीख चाहिए तो कोर्ट आपको आपके बयान की कॉपी फ्री में देगा तथा बाद में याद करके आने के लिए समय भी देगा|

अगर आपको बयान देते समय सही वातावरण नही लग रहा है जैसे की आप से सवाल पूछने का तरीका सही नही है या जो आपको बोला जा रहा है वो भाषा ही आपको समझ नहीं आ रही है तो आप उस की शिकायत जज से कर सकते है तथा जज के ना सुनने पर अपनी गवाही को रोक भी सकते है तथा दुसरे जज की निगरानी में गवाही की मांग कर सकते है|

अगर आप स्टेट केस में अदालत में गवाही के लिए आये है तो आपको आने व जाने का खर्चा कोर्ट की तरफ से मिलता है वो आप की दूरी व साधन के हिसाब से दिया जाता है| वो कितना भी हो सकता है|

तो ये थी कोर्ट में गवाही देने से जुडी कुछ बाते जिनका अगर एक गवाह ध्यान रखे तो ना सिर्फ उसका केस मजबूत होगा बल्कि वो खुद भी परेशानी से बच जाएगा|

हमें उम्मीद है कि इन सब जानकारियों के साथ अब अगर आपको कभी कोर्ट में गवाही देनी पड़े तो आप घबरायेंगे नहीं क्योंकि अब आपको अपने अधिकारों का ज्ञान हो चुका है|आशा करते हैं ये वीडियो आपको पसंद आया होगा| ऐसे ही वीडियोज देखने के लिए आप लीला के साथ जुड़े रह सकते हैं| वीडियो देखने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद|

जब भी हिन्दू विधि यानि कानून की बात होती है तो मनु स्मृति का जिक्र जरूर आता है। मनु स्मृति का नाम आम तौर पर विवादों में ही रहता है। महिलाओं और शूद्रों के प्रति कुतर्क से भरे अपने कुछ अध्यायो के बावजूद भी मनु स्मृति भारतीय विधि से किस तरह जुड़ गई इसकी एक रोचक कहानी है। जिसे सुनाने से पहले हिन्दू विधि के मुख्य स्रोत को जानना जरूरी हिन्दू विधि के 7 मुख्य स्रोत है जिन्हे वर्गों में बांटा गया है जिसमें पहले में 4 और दूसरे वर्ग में 3 स्रोत आते हैं।

पहला प्राचीन या मूल स्रोत

  • श्रुति
  • स्मृति
  • टीका एवं निबन्ध
  • रूढ़ियाँ

दूसरा आधुनिक या द्वीतीय स्रोत

  • साम्या न्याय, और सुआत्मा
  • पूर्व-निर्णय यानी किसी मिलते-जुलते मामले में आने फैसले
  • विधान

हम सीधे बात करते हैं स्मृति की। स्मृति यानि याद। ऐसा माना जाता है कि ऋषि मुनियों ने अपनी स्मृति के आधार पर देवों की वाणी को वेदों में लिखा उसे ही स्मृति कहा गया। स्मृति के साथ ही विधि यानि कानून का क्रमबद्ध और सुव्यवस्थित युग का आरम्भ हुआ। यही भारतीय विधि का स्वर्ण युग था। आज जब हम विधि के रूप में स्मृति की बात करते हैं तब मनु स्मृति का जिक्र होता है। आज मैं आपको मनु स्मृति के भारतीय विधि के आधार बनने की कहानी बताउँगा।

जब भारत में अंग्रेजी शासन था तब उन्होंने न्याय व्यवस्था में इसकी सहायता ली। अंग्रेजो का मानना था कि जिस तरह शरिया मुसलमानों के यहाँ न्याय का धर्म आधार है उसी तरह मनु स्मृति हिन्दुओं के लिये है। बस यहीं से मनु स्मृति भारतीय विधि का अंग बन गया इसी के आधार पर अंग्रेजों के जमाने में मुकदमों के फैसले होने लगे।

स्मृतियों में मनु स्मृति का महत्वपूर्ण स्थान है। मनु स्मृति में 12अध्याय और 2694श्लोक हैं। मनु स्मृति के संकलन की तिथि ईसा से 200साल पहले की मानी जाती है। हालाँकि इसके कुछ अध्याय बहुत अच्छे हैं लेकिन अध्याय पाँच महिलाओं और शुद्रों के खिलाफ है जो आधुनिक युग में स्वीकार्य नहीं है। ना ही न्याय संगत है। इसी वजह से 25 जुलाई 1927को बाबा साहेब ने मनु स्मृति को जला दिया था। तो ये थी मनु स्मृति की कहानी जो आये दिन विवादों में रहती है।

अक्सर लोगो के मन में वसीयत से जुड़े बहुत सारे सवाल होते हैं| जैसे कि वसीयत कैसे की जाती है इसे कैसे रजिस्टर्ड कराया जाता है| या फिर ये भी एक सवाल होता है कि क्या वसीयत मौखिक रूप से हो सकती है जैसे किसी ने कहा कि मेरी सम्पत्ती का वो वारिस होगा तो क्या ये सही है| आज का ये वीडियो इन्ही सब सवालों पर आधारित है|आइये जानते हैं|भारतीय उत्तराधिकारी अधिनियम1952  की धारा 2 (h) के अनुसार विलया वसीयत या इच्छापत्र उसे कहते हैं जो व्यक्ति अपनी सम्पत्ती के बारे में कहता है की उसकी म्रत्यु के बाद उसकी सम्पत्ती का वारिस कौन होगा या उसका क्या करना है|यानी जब कोइ व्यक्ति अपनी इच्छा से अपनी चल या अचल संपत्ति का अधिकार किसी दूसरे व्यक्ति को सौंपता है उसे विल कहते है| इसमे विल करने वाला व्यक्ति अनुदानकर्ता यानी टेस्टटेटर कहलाता है और जिसे सम्पत्ती मिल रही है वो लाभार्थी यानी बेनिफिशयरी कहलाता है| और अगर वो अपनी सम्पति के लिए कोई संरक्षणकर्ता नियुक्त करता है तो उसे निष्पादककर्ता यानी एक्जिक्यूटर कहते हैं|

वसीयत के प्रकार

वसीयत दो प्रकार की होती हैं 1- विशेषाधिकार इच्छा पत्र या Privileged will 2- विशेष अधिकार रहित इच्छा पत्र यानी (Un-Privileged will)

आइये पहले 1- विशेषाधिकार इच्छा पत्र यानी Privileged will के बारे में जान लेते हैं|विशेषाधिकार इच्छा पत्रयानी Privileged will के अन्दर वो लोग आते हैं जो खतरनाक प्रोफेशन से जुड़े हैं जिनके जीवन पर हमेशा मौत का ख़तरा बना रहता है जैसे सैनिक या समुद्र से जुड़े प्रफेशन आदि|इसलिए इन लोगो के लिए इस एक्ट में स्पेशल प्रावधान किया गया है की कोई भी सैनिक आर्मी, नेवी या वायुसेना में जो युद्ध क्षेत्र में हो या सरकार द्वारा किसी अभियान में नियुक्त किया हो या कोई सरकारी कर्मचारी जो की कंपनी द्वारा नियुक्त कोई नाविक हो और समुन्द्र में हो,  वह व्यक्ति  लिखित में दो साक्षियों के हस्ताक्षर के साथ विल वसीयत कर सकता है तथा अगर वह व्यक्ति अपनी विल लिखने में सफल न हो तो तो भी वह व्यक्ति दो साक्षियों के सामने मौखिक रूप से विल वसीयत कर सकता है| ऐसे में यह विल एक रजिस्टर्ड विल की तरह ही मानी जाएगी| इस प्रकार की विल को साबित करने के लिए प्रोबेट यानी उन्हें कोर्ट में जाने की आवश्यकता नही होती है|

2- विशेष अधिकार रहित इच्छा पत्र यानी (Un-Privileged will)

ये विल वह आम विल होती है जो की हम लोग करते है इस विल के लिए,  विल का लिखित होना और दो गवाह होना जरूरी होता है|

अब सवाल उठता है कि क्या कोई सामान्य व्यक्ति भी मौखिक विल कर सकता है| जी हा अगर कोई व्यक्ति मरने की अवस्था में है तो वह भी दो गवाहों के सामने मौखिक विल कर सकता है वह विल भी मान्य होती है लेकिन इनको साबित करने के लिए की अमुक व्यक्ति ने मरने से पहले ये बोला था उसके लिए कोर्ट में जाना पड़ता है

वसीयत लिखने के नियम 

आइये अब जान लेते हैं कि वसीयत लिखने की शर्ते क्या होती हैं|

विल लिखने के लिए कुछ क़ानूनी बातो का पालन करना होता है जो की भारतीय उत्तराधिकारी अधिनियम यानी Indian succession act 1952 में लिखित है| आइये जानते हैं ये नियम|

  • विल करने वाला व्यक्ति 18 वर्ष की आयु का होना चाहिये|
  • विल लिखित में होनी चाहिये|
  • विल के उपर विल करने वाले व दो साक्षियों के हस्ताक्षर होने चाहिए|

वैसे तो विल को रजिस्टर्ड करवाना जरूरी नही होता है पर कब जैसे कानून का दरुपयोग हो रहा है तो कोई भी सरकारी संस्था अनरजिस्टर्ड विल को नही मानती है इसके अलावा जो भी विल होती है जो उसमे अगर किसी को कोई आपत्ति है तो उस से प्रोबेट करवाने के लिए बोलते है| विल को हमेशा कोर्ट से ही रजिस्टर करवाना चाहिए|अगर कोइ अपनी विल को रजिस्टर नहीं करवा पाता है या विल को खाली नोटराइज करवा लेता है तो व्यक्ति के मरने के बाद उस विल से कोई भी प्रॉपर्टी आप के उत्तराधिकारी के नाम ट्रांसफर नहीं होती| बल्कि  उनकी परेशानी बाढ जाती है| जब वो प्रोपर्टी क्लेम करते है तो उन्हें टोटल प्रॉपर्टी की वैल्यू पर भी कोर्ट फीस देनी होती हैजो कि उस राज्य के अनुसार होती है| इसमे पैसे व समय का हर्जाना तो होता ही है बल्कि मानसिक पीड़ा भी होती है|

कौन नहीं करा सकता वसीयत

अब आपके लिए ये भी जानना जरूरी है कि कौन व्यक्ति वसीयत नही कर सकता है|

पहला - ऐसा कोइ भी व्यक्ति जो की किसी ऐसी मानसिक बीमारी से ग्रस्त हो जिसमे की वो सोचने व समझने के लायक नही हो

दूसरा – कोइ भी एसा व्यक्ति जो अन्य प्रकार की बीमारी से ग्रस्त हो जिसमे भी वो सोचने व समझने की स्तिथि में नही हो|

तीसरा - वह व्यक्ति शराब के नशे में हो

चौथा - वह व्यक्ति किसी भी प्रकार के दबाव में हो

पांचवा - अगर वह व्यक्ति 18 वर्ष से कम उम्र का है| ये लोग वसीयत नहीं कर सकते है|

वसीयत से जुड़े दो और इम्पोर्टेन्ट सवाल होते हैं

पहला - क्या विल वसीयत में बदलाव हो सकता है

तो जवाब है जी हा अगर आप अपनी वसीयत में किसी भी प्रकार का कोई बदलाव करना चाहते है तो आप उसके लिए अपनी नई विल बनवा सकते हैंऔर उसमे ये भी लिखेंगे की में अपनी पुरानी वसीयत को समाप्त कर रहा हु| इसके बाद पुरानी विल को रजिस्ट्रार ऑफिस से समाप्त करवाना होगा|

कितनी बार हो सकती है वसीयत

अब सवाल है कि एक व्यक्ति अपने जीवन में किनती बार विल वसीयत कर सकता हैतो जवाब है|आप अपने जीवन में अनगिनत बार विल कर सकते है लेकिन सबसे पहले आपको अपनी पुरानी विल समाप्त करवाने के लिए क़ानूनी कार्यवाही करनी होगी| और नई विल का रजिस्ट्रेशन करवाना होगा|

वसीयत से जुड़े कुछ रोचक तथ्य

वसीयत से जुड़े कुछ और रोचक सवाल हैं जैसे विल वसीयत किस सम्पति या वस्तु की हो सकती है और किन सम्पतियो या वस्तुओ की नही हो सकती है|

वसीयत सिर्फ उस चल व अचल सम्पति की हो सकती है जो व्यक्ति ने खुद खरीदी है या विल या गिफ्ट के माध्यम से उसे मिली है| लेकिन ऐसी कोइ सम्पत्ती जिस पर व्यक्ति का किसी भी प्रकार का पजेशन नहीं है तो वो उस वस्तु की विल नही कर सकता|

ठीक ऐसे ही कोई भी पति अपनी पत्नी के जीवित रहते उसके दहेज के सामान की विल नही कर सकता है वह विल अमान्य होगी| हां वह अपनी शादी में मिले गिफ्ट पर विल करने के लिए वह स्वतंत्र है| महिला चाहे तो अपने मायके से मिले दहेज के सामान की विल कर सकती है क्योंकि वो उसकी अपनी सम्पति होती है|

वसीयत से जुड़े कुछ और सवाल

क्या विल किसी अनजान व्यक्ति या गैर धर्म के व्यक्ति के नाम हो सकती है

जी हा आप किसी भी गैर या अंजान व्यक्ति के नाम वसीयत कर सकते है जिसे आप जानते भी नही है| इतना ही नही आप अपने धर्म के अलावा किस और धर्म के व्यक्ति के नाम भी विल कर सकते है|

अगर कोई व्यक्ति किसी दुसरे की चल सम्पति की वसीयतकर जाये तो क्या होगा

अगर कोई भी व्यक्ति किसी और व्यक्ति की सम्पति की विल कर जाये तो वह विल अमान्य होगी इसमे पीड़ित व्यक्ति कोर्ट भी जा सकता है तथा उस विल को अमान्य करार करवा सकता है|

अगर विल के द्वारा सम्पति किसी नाबालिग को देनी हो तो

अगर किसी व्यक्ति को कोई विल करनी हो और वह जिसके नाम करना चाहता हो और वह एक नाबालिग बालक हो और उसे पता हो की वह अब मरने वाला है तो ऐसी स्तिथि में वह व्यक्ति किसी भी अन्य व्यक्ति को निष्पादक एक्जीक्यूटर नियुक्त कर सकता है| वह एक्जीक्यूटर उस बालक के बलिग होने तक उस सम्पति का केयर टेकर बन कर कार्य करता है|

वसीयत रजिस्टर कैसे करवाएं

वसीयत को रजिस्टर्ड करवाना कोई बड़ा कार्य नही है उसे आप में से कोई भी रजिस्टर्ड करवा सकता है| विल आप के एरिया के रजिस्ट्रार ऑफिस में रजिस्ट्रार के सामने रजिस्टर्ड होती है| कई राज्यों में ऑनलाइन भी ये प्रोसेस पूरी होती है|

इसके बाद अपनी विल की दो लिखित कॉपी ले तथा उसके साथ अपने व अपने साक्षियों के आधार कार्ड की कॉपी भी लगा दे|

इसके बाद आप विल वसीयत की फ़ीस के लिए जो भी उस राज्य के द्वारा निश्चित की गई हो उस का एक ड्राफ्ट बनवाले| और उस फीसकी पर्ची कटवा सकते है|

इसके साथ आप को एक एफिडेविट तैयार करना होगा जिसमे में की ये लिखा हो की में भारत का नागरिक हु व वसीयत में लिखी गई सभी बाते सत्य है|

इसके बाद अगर आपके राज्य में ऑनलाइन अपॉइंटमेंट लेने की सुविधा है तो अपना समय ले लें|या फिर आपके रजिस्ट्रार के नाम सेएप्लीकेशन दें की आपकी विल रजिस्टर की जाये तथा उसके लिए समय ले|

इस सब के बाद आप की दोनों विल की कोपियो पर आप के हस्ताक्षर व अंगूठे के निशान के अलावा सभी उंगलियों के निशान भी हर पेज पर लिए जायेंगे तथा आपके साक्षियों के भी हस्ताक्षर व अंगूठे के निशान लिए जायेंगे|

इसके बाद आप तीनो लोगो की फोटो खिचेंगी जो की आप के विल वसीयतपर भी दिखाई देगी|

इसके बाद शाम को आपको एक विल की कॉपी मिल जाएगी व दूसरी कॉपी रजिस्ट्रार ऑफिस में रिकॉर्ड के तौर पर रहेगी|

इसके अलावा आप  चाहे तो अपने गवाहों की विडियो रिकॉर्डिंग भी करवा सकते है तथा इसकी कॉपी भी ले सकते है|

जब भी किसी व्यक्ति के साथ कोई अपराध होता है तो उस अपराध की शिकायत पुलिस में कराई जाती है| उस शिकायत को FIR यानी फर्स्ट इनफार्मेशन रिपोर्ट कहते है|इसमे लेख में हम बताएँगे कि FIR क्या होती है कैसे होती है FIR लिखने का सही तरीका क्या होता है| साथ ही ये भी बताएँगे कि एक स्ट्रोंग FIR आप कैसे लिखवा सकते हैं| इसके अलावा एक बहुत महत्वपूर्ण बात ये भी बताएँगे कि अगर पुलिस आपकी FIR लिखने से मना करे तो क्या करें|

पुलिस FIR लिखनेसे मना करे तो

कई बार पुलिस FIR लिखने में आनाकानी करती है| लेकिन CRPC 154 के तहत FIR लिखवाना आपका अधिकार है| अगर पुलिस आपकी एफआईआर लिखने में आनाकानी कर रही है तो आप उनके ऊपर के अफसर जैसे CO, SP, SSP,) को शिकायत कर सकते है| या फिर अगर आप दिल्ली के हैं तो जॉइंट कमिश्नर या अगर दुसरे किसी राज्य से हैं तो रेंज के डीआई जी से मदद मांग सकते हैं| इसके अलावा आप किसी एनजीओ से भी मदद ले सकते हैं|

जब FIR दर्ज हो जाए तो ये ध्यान रखें कि FIR की कॉपी जरूर लें और देख लें कि उस पर उस पुलिस स्टेशन की मुहर थाना प्रमुख यानी एसएचओ के साइन जरूर हों। एफआईआर की कॉपी आपको देने के बाद पुलिस अधिकारी अपने रजिस्टर में लिखेगा कि सूचना की कॉपी शिकायतकर्ता को दे दी गई है। इसके बाद आपकी शिकायत पर हुई प्रोग्रेस यानी कारवाई की सूचना संबंधित पुलिस आपको डाक से भेजेगी।

जीरो FIR

अब नेक्स्ट स्टेप आता है कि पुलिस कहती है कि मामला उनके थाने का नहीं है| तो ऐसे में आप क्या करें| लेकिन आपको जानकर अच्छा लगेगा कि अगर एफआईआर कराते वक्त आपको और पुलिस को घटना स्थल की सही जानकारी नहीं है तो भी चिंता की बात नहीं। ऐसे में आप जीरो FIR दर्ज करवा सकते हैं| जिस भी थाने में आप पहुंचे हैं वहां कि पुलिस FIR  दर्ज कर जांच करना ही होगा और जांच के दौरान घटना स्थल का थानाक्षेत्र पता लग जाने के बाद उस केस को संबंधित थाने में ट्रांसफर कर देगी| ये पुलिस का ही काम है| याद रखिये की किसी भी निकट के थाने में FIR दर्ज करवाना आपका कानूनी हक़ है। एफआईआर दर्ज करवाने का कोई शुल्क नहीं लिया जाता है। अगर आपसे कोई भी एफआईआर दर्ज करवाने के नाम पर फीस या नकद की मांग करे तो उसकी शिकायत उसके सीनियर अफसर या विजिलेंस के पास की जा सकती है।

FIRलिखने का सही तरीका

अब आपके लिए ये जानना जरूरी है कि एफआईआर लिखने का सही तरीका क्या है| अक्सर लोगो की शिकायत होती है कि पुलिस ने उनकी एफआईआर नहीं लिखी या या फिर मजिस्ट्रेट के यहाँ FIR के लिये किया गया आवेदन निरस्त हो गया। इसके तो कई कारण होते है लेकिन एक कारण ये होता है कि कि आपके लिखने तरीका गलत हो। आइये जानते हैं कि FIR  लिखने या सही  तरीका क्या है| सबसे पहले इस बात का ध्यान रखें कि FIR को स्पष्ट लिखें और पूरे मामले को लिखें| जिसमें घटना, तारीख, समय स्थान स्पष्ट रूप से पता चले| कई बार ऐसा हुआ है कि कुछ शब्दों के कारण FIR पूरी तरह कमजोर बनी और आरोपी जल्दी छूट गये या बरी हो गए| जैसे अगर कोइ महिला रेप की रिपोर्ट करवाना चाहती है तो पुलिस उसे रेप शब्द ना लिख कर गलत काम जैसे शब्दों का प्रयोग करती है| इसकी कई वजह हो सकती हैं जैसे पुलिस की नीयत रहती है कि उनके थाना क्षेत्र में क्राइम रेट कम दिखे| क्योंकि रेप एक गंभीर अपराध है| इस से पुलिस की परेशानी काफी बढ़ जाती है, तो वो इसे गलत काम कह कर अपराध की गंभीरता को कम कर देती है| तो कानूनी शब्दों का ध्यान रखना बेहद जरूरी है| इसके अलावा कुछ और भी बिन्दु हैं जिन के आधार पर आप शिकायत लिखेंगे तो आपकी FIR जरूर लिखी जाएगी या फिर अगर आप धारा 125 के तहत मजिस्ट्रेट को आवेदन दे रहे हैं तो वो भी रिजेक्ट नहीं होगा|

क्योंकि पहली शिकायत आपको ही कागज़ पर लिख कर देनी होती है तो आप इसके लिए एक काम करें हम आपको कुछ सवाल बताते हैं जिनके जवाब में आप एक मजबूत FIR लिखवा सकते हैं|

आइये जानते हैं वो सवाल | सबसे पहले पेज पर लिखिए कब, कहाँ, किसने, किसको, किसलिए| अब इनके जवाब दीजिये| कब यानी तारीख और समय| कहाँ यानी की घटना किसा जगह हुयी| किसने यानी अपराध को किसने अंजाम दिया, वो कोइ ज्ञात या अज्ञात कोइ भी हो सकता है, उसकी संख्या भी आप बता सकते हैं| किसलिए यानी की अपराधी की इंटेंशन| ये बहुत इम्पोर्टेंट शब्द है| कई बार ऐसा होता है कि कोइ व्यक्ति किसी पर गोली चला दे या जानलेवा हमला कर दे तो ये जांच का विषय होगा कि ये हमला आत्म रक्षा में हुआ या ह्त्या करने के इरादे से किया गया| इससे ही पूरा केस पलट सकता है| इसी के आधार पर हत्या या गैर इरादतन हत्या जैसी धारा निर्धारित होती हैं|   

तो ये कुछ पॉइंट्स थे जिससे आप एक मजबूत FIR दर्ज करवा सकते हैं| उमीद है ये वीडियो आपके लिए बेहद यूजफुल होगा, बहुत बहुत धन्यवाद|

आज हम प्रेमी जोड़ो के लिए जारी उन दिशा निर्देशों पर बात करेंगे जो सुप्रीम कोर्ट ने 28 मार्च 2018 में  प्रेमी जोड़ो की सुरक्षा के लिए जारी किये थे| अगर वो 12 गाइडलाइनस लागू हो जाएँ तो भारत में Horror किलिंग यानी सम्मान के नाम पर प्रेमी जोड़ो की ह्त्या करने पर रोक लगेगी और दो प्यार करने वालो को शादी करने में आसानी होगी| क्या हैं वो 12 गाइडलाइनस? उसे जानने से पहले थोड़ा विस्तार से बताते हैं कि कोर्ट ने क्या कहा था|

कोर्ट ने कहा कि अगर दो बालिग अपनी मर्जी से शादी कर रहे हैं तो कोई भी इसमें किस तरह की दखल नहीं दे सकता.कोर्ट ने कहा कि जब तक केंद्र सरकार इस मामले पर कोई कानून नहीं ले आती, तब तक यह आदेश प्रभावी रहेगा.

अपनी मर्जी से अंतर- जातीय और अंतर- आस्था विवाह करने वाले प्रेमी जोड़ों के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक आदेश देते हुए खाप पंचायत जैसे गैरकानूनी समूहों के दखल को पूरी तरह गैरकानूनी करार देते हुए इन पर पाबंदी लगा दी है. कोर्ट ने कहा कि अगर दो बालिग अपनी मर्जी से शादी कर रहे हैं तो कोई भी इसमें किस तरह की दखल नहीं दे सकता.

कोर्ट ने कहा कि जब तक केंद्र सरकार इस मामले पर कोई कानून नहीं ले आती, तब तक यह आदेश प्रभावी रहेगा. इसका उल्लंघन करने वाले को कठोर सजा दी जाएगी. ये फैसला कोर्ट ने कोर्ट ने 2010 में एक एनजीओ 'शक्ति वाहिनी' की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए सुनाया था. इस संबंध में कोर्ट ने जो गाइडलाइंस जारी की वो इस तरह हैं...

* राज्य सरकारें ऐसे इलाकों/गांव की पहचान करें जहां पिछले 5 साल में प्रेमी जोड़ों की हत्या या उनके साथ मारपीट की घटनाएं हुई हों. वहां के प्रभारी पुलिस अधिकारी खास चौकसी बरतें.

* अगर खाप पंचायत या जातीय समूह की प्रस्तावित बैठक की जानकारी पुलिस अधिकारी को मिले तो वो तुरंत वरिष्ठ अधिकारियों को सूचना दे. DSP या कोई आला अधिकारी बैठक करने जा रहे समूह को बताए कि प्रेमी जोड़ों के खिलाफ कार्रवाई के लिए बैठक गैरकानूनी है.

* बैठक में DSP खुद मौजूद रहे और सुनिश्चित करें कि प्रेमी जोड़ों या उनके परिवार को नुकसान पहुंचाने जैसा कोई गैरकानूनी फैसला न लिया जाए. बैठक की वीडियो रिकॉर्डिंग भी करवाई जाए.

* अगर बैठक से पहले ये अंदेशा हो जाए कि इसमें प्रेम विवाह करने वाले किसी जोड़े को नुकसान पहुंचाने का फैसला होगा और खाप वाले बैठक रोकने को तैयार न हों तो ज़िला प्रशासन धारा 144 लगाए. समूह से जुड़े लोगों को एहतियातन हिरासत में लें.

* केंद्रीय गृह मंत्रालय और राज्य सरकारें आपस मे चर्चा करें. पुलिस और दूसरी एजेंसियों को ऐसे अपराधों की रोकथाम ओर संवेदनशील बनाने के उपाय करें.

* अगर ऐसी बैठक हो जाने के बाद पुलिस को उसकी जानकारी मिले तो तुरंत FIR दर्ज करे. बैठक में लिए गए फैसलों के आधार पर धाराएं लगाई जाएं. खतरे में आए जोड़े/परिवार को सुरक्षा दे.

* प्रशासन ऐसे प्रेमी जोड़ों या प्रेम विवाह करने वाले जोड़ों को सुरक्षित जगह पर रखे, जिन्हें पंचायत या परिवार से खतरा हो. अगर पंचायत/जातीय समूह के चलते प्रेमी जोड़ों के परिवार वालों को खतरा हो तो उन्हें भी शरण दी जाए। राज्य सरकारें इस काम के लिए हर जिले में सेफ होम बनाने पर विचार करें.

* प्रशासन इस बात को देखे कि लड़का और लड़की वयस्क हैं या नहीं. वयस्क जोड़ा अगर शादी करना चाहता है तो अपनी देख-रेख और सुरक्षा में उनकी शादी करवाए. अगर वो जोड़ा सेफ होम में रहना चाहता हो तो उसे मामूली किराए पर एक महीना रहने दिया जाए. ज़रूरत पड़ने पर रहने की इजाज़त बढ़ाई जाए. इसकी अधिकतम सीमा 1 साल तक हो सकती है.

* अगर कोई प्रेमी जोड़ा या प्रेम विवाह करने वाला जोड़ा प्रशासन के पास आए तो उनकी शिकायत की एसीपी रैंक के अधिकारी जांच करें. शिकायत में कही गई बातों की पुष्टि होने पर FIR दर्ज हो. जोड़े के लिए खतरा बन रहे लोगों को हिरासत में लिया जाए.

* जानकारी मिलने पर भी प्रेमी जोड़े को सुरक्षा देने और दूसरी ज़रूरी कार्रवाई करने में नाकाम रहने वाले अधिकारियों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई हो. 6 महीने में कार्रवाई खत्म की जाए.

* हर जिले में SSP और समाज कल्याण अधिकारी के नेतृत्व में विशेष सेल बनाया जाए. इस सेल में प्रेमी जोड़े अपनी शिकायत रख सकते हैं. ये विशेष सेल 24 घंटे चलने वाली हेल्पलाइन सुविधा भी दें.

* हॉनर किलिंग यानी झूठी शान के लिए प्रेमियों की हत्या और उन्हें या उनके परिवार को नुकसान पहुंचाने के मामलों की सुनवाई के लिए विशेष अदालतें बनाई जाएं जो इन मामलों की फ़ास्ट ट्रैक सुनवाई करें|

 

तो ये थी वो गाइडलाइन्स जो सुप्रीम कोर्ट ने जारी की थीं| देखना होगा कि कब तक इन पर सही में अम्ल होता है और प्रेम करने

आपने अक्सर एक शब्द सुना होगा| सेल्फ डिफेन्स| कहा जाता है कि अगर सेल्फ डिफेन्स यानी की आत्म रक्षा में किसी का मर्डर भी हो जाए तो उस व्यक्ति पर हत्यारे की तरह मुकदमा नहीं चलता बल्कि बहुत सारी परिस्थितियों-स्थितियों का आंकलन किया जाता है तब उसकी सजा पर विचार किया जाता है|इस लेख में हम इसी पर बात करेंगे| सेल्फ डिफेन्स क्या है और अगर सेल्फ डिफेन्स में कोइ अपराध हो जाए तो इसे अदालत में कैसे साबित करे|

लेकिन पहले आप जानना चाहेंगे कि कानून की नजर में आत्म रक्षा क्या है|.....जब किसी व्यक्ति की जान खतरे में हो और उसे लगे की अमुक व्यक्ति उसे जान से मार ही देगा और उसके पास हथियार भी हो तो वो उससे बचने के लिए उस पर हमला करना आत्मरक्षा है ऐसा भी होता है की सामने वाला व्यक्ति ज्यादा ताकतवर है तो उससे लड़ने के लिए किसी हथियार का उपयोग भी आत्मरक्षा माना जाता है|

भारतीय दंड संहिता की धारा 96 से लेकर 106 तक की धारा में सभी व्यक्तियों को सेल्फ डिफेन्स यानी  आत्मरक्षा का अधिकार दिया गया है। इन धाराओ में व्यक्ति से अपनी जान यासम्पत्ति बचाने या दूसरे किसी की जान बचाने के दौरान कोइ अपराध हो जाता है तो वो सेल्फ डिफेन्स में आता है|लेकिन हाँ दूसरे की सम्पत्ति बचाने के मामले में यह नियम लागू नहीं होता| आत्मा रक्षा कानून का लाभ तब तक नहीं मिल सकता जब तक कि व्यक्ति ये साबित ना कर दे कि उसने जो एक्शन लिया वो उसकी जान व माल की रक्षा के लिए अपरिहार्य था|इसमे एक और चीज है यदि कोइ मानसिक रूप से कमजोर या पागल व्यक्ति है उसके हाथो अपराध हो जाए तो वहा भी सेल्फ डिफेन्स के अन्दर आता है|सेल्फ डिफेन्स मे सजा या तो नरमी रख कर दी जाती है या माफ भी कर दी जाती है|

आत्मरक्षा को साबित करने की जिम्मेदारी अभियुक्त की होती है कि वह तथ्यों व परिस्थितियों के द्वारा ये साबित करे कि उसने ये काम आत्मरक्षा में किया है। यदि व्यक्ति इस अधिकार का उपयोग करना चाहे तो वो कोर्ट में एप्लीकेशन दे सकता है| लेकिन यदि व्यक्ति आवेदन नहीं भी करता और कोर्ट को लगता है तो कोर्ट उचित सबूतों के आधार पर आत्म रक्षा कानून पर विचार कर सकता है|अभियुक्त पर घाव या चोट के निशान आत्मरक्षा के दावे को साबित करने के लिए मददगार साबित हो सकते हैं ।

लेकिन कई बार ऐसा भी हो सकता है कि अगर आत्म रक्षा में किसी की ह्त्या हो जाए लेकिन अभियुक्त के शरीर पर चोट के निशान भी ना हो तो क्या हो होगा?इसमे हम रेप केस का उदाहरण ले सकते हैं| यदि किसी महिला के साथ कोइ रेप करने की कोशिश करे तो और आत्म रक्षा में उसके हाथो रेपिस्ट का मर्डर हो जाए और उसके ऊपर एक भी खरोंच ना लगी हो तो भी महिला को आत्म रक्षा कानून के तहत सजा माफ करवाने का मौक़ा मिलेगा| इसलिए ऐसे अपराधो में हालातो का बहुत बारीकी से विश्लेषण किया जाता है| एक और विशेश बात परिस्तिथि व जगह भी मायने रखती है| ऐसा नहीं हो सकता कि कोइ किसी के घर पर जा कर उसे खूब मारे या उसकी ह्त्या कर दे और उसे आत्मरक्षा का नाम दे दे| अपराध के सीन में आत्म रक्षा तभी मानी जाएगी जब यह साबित हो जाए कि अभियुक्त के पास अपने बचाव में ये करना अनिवार्य था मतलब उसके पास इसके सिवा कोइ चारा नहीं बचा था|

तो ये था आत्म रक्षा से जुडा कानून, आशा है ये लेख आपको पसंद आया होगा और आपके लिए उपयोगी होगा|

आपने अक्सर नगर पंचायत के बारे में सुना होगा मगर आपने ग्राम पंचायत के बारे में कम सुना होगा आज हम आपको न्याय पंचायत के बारे में बताएँगे कि न्याय पंचायत क्या होता है? और न्याय पंचायत के अधिकार क्षेत्र क्या होते हैं? गाँवों में न्याय पंचायत का बहुत महत्त्व है।अगर आप कपल हैं तो ये आपके लिए बहुत जरूरी है। क्योंकि आप जहां रहते हैं ये वहां काम करती है| इस लेख में हम आपको बताएँगे कि न्याय पंचायत क्या होती है उत्तर प्रदेश पंचायत राज अधिनियम, 1947 के अंतर्गत न्याय पंचायत क्या है? और न्याय पंचायत का क्षेत्राधिकार कहाँ तक है?


न्याय पंचायत क्या है?


न्याय पंचायत जो कि ग्राम स्तर पर होने वाले विवादों के निपटारा करने वाली एक प्रणाली है. इसका कार्य प्रकृतिक न्याय के सिद्धांत के अंतर्गत न्याय करना है। इस न्याय पंचायत में दीवानी के साथ साथ फौजदारी यानी क्रिमिनल मैटर को भी देखा जाता है| इसमे ख़ास बात यह है कि उत्तर प्रदेश पंचायत राज अधिनियम धारा की 42 में न्याय पंचायत की स्थापना का प्रावधान किया गया है, जिसके तहत राज्य सरकार या कोइ भी विहित उनके अंर्तगत आने वाले प्राधिकारी होंगे जिलों को मंडल में विभाजित करेगा, और हर एक मंडल ग्राम पंचायत के अधिकार क्षेत्र में उतने ग्राम सम्मिलित होंगे जितने इष्टकर हो, राज्य सरकार या विहित प्राधिकारी हर एक के मंडल के लिए एक न्याय पंचायत की स्थापना करेगा। लेकिन यहाँ एक निर्बन्धन भी है कि हर एक ग्राम पंचायत के क्षेत्र जहाँ तक संभव है परस्पर एक दूसरे से जुड़े रहेंगे।


दूसरी मुख्य बात है कि अधिनियम के तहत हर एक न्याय पंचायत के कम से कम 10 सदस्य या अधिक से अधिक 25 सदस्य होंगे जो निर्धारित किये जायेंगे, लेकिन न्याय पंचायत के लिए यह वैध होगा कि उनके सदस्यों के किसी स्थान के रिक्त (खाली) होते हुए भी न्याय पंचायत अपना काम करती रहे,
लेकिन यहाँ भी एक निर्बन्धन है कि जब तक उसके पंचो की संख्या जो है उसकी दो तिहाई संख्या से कम नही होनी चाहिए। इस लेख में हम आपको 5 बिंदुओं से समझाने की कोशिश करेंगे जिससे आपको न्याय पंचायत के बारे में आसानी से समझ आ जाएगा|


पहला बिन्दु यह है कि न्याय पंचायत को ग्राम पंचायत की न्यायपालिका कहा जाता है, क्योकि यह न्याय का कार्य करती है, गाँव में होने वाले विवादों का पक्षपात किये बिना निपटारा करती है। दूसरा न्याय पंचायत में एक सरपंच और उपसरपंच होते है। तीसरा न्याय पंचायत में कम से कम 10 या अधिक से अधिक 25 तक सदस्य होते है। चौथा न्याय पंचायत पचो का कार्यकाल 5 वर्ष के लिए होता है। और पांचवा न्यायपंचायत को दीवानी और छोटे फौजदारी यानी क्रिमिनल मुकदमे होते हैं उनको सुनने का अधिकार है।


आइये जानते हैं न्याय पंचों की नियुक्ति कैसे होती है।


उत्तर प्रदेश पंचायत राज अधिनियम धारा 43 के तहत न्याय पंचायत के पंचो की नियुक्ति का प्रावधान किया गया है, जिसके तहत ग्राम पंचायत के सदस्यों में से विहित प्राधिकारी जितने की नियत किये जाये, न्याय पंचायत के पंच नियुक्त करेगा और इसके बाद इस प्रकर जो व्यक्ति पंच के लिए नियुक्त किये जायेंगे, वे सस्दय ग्राम पंचायत के सस्दय नहीं रहेंगे और ग्राम पंचायत उनके स्थान, जहाँ तक कि संभव हो, उस रिक्त स्थान को उसी तरीके से भरे जाएंगे जो कि अधिनियम 12 में दिया गया है।


न्याय पंचायत का स्थानीय क्षेत्राधिकार कहाँ यहाँ भी आपके लिए जानना बेहद जरूरी है ?


उत्तर प्रदेश पंचायत राज अधिनियम धारा 51 में न्याय पंचायत की उस स्थानीय अधिकारिता का उल्लेख किया गया है जिसके अंतर्गत दीवानी और फौजदारी के मुक़दमे दाखिल किये जाते है जैसे कि:दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 में यानी IPC 1973 किसी बात के होते हुए भी, फौजदारी का ऐसा हर एक मुकदमा जो कि न्याय पंचायत के द्वारा विचार किया जा सकता है, वो न्ह्याय पंचायत जो क्षेत्राधिकार होता है वो भी आपको बताया है| तो यह बहुत महत्वपूर्ण है कि अगर आप किसी गाँव में रहते हैं तो वहां पर ग्राम पंचायत हैं आपको क्षेत्राधिकार के बारे में भी जानकारी दी गयी| और सामान्य प्रकृति के जो अपराध होते हैं चाहे वो सिविल प्रकृति के हों या क्रिमिनल के हों वो सभी न्याय पंचायत के अंर्तगत आते हैं जिसको हम देखते हैं कि अगर कोइ विवाद हो जाए तो पांचो के माध्यम से भी उसका समाधान किया जाता है| वो पञ्च और जो पंचायत होती है वो न्याय पंचायत का कार्य करती है| तो इस लेख के माध्यम से यह बताने का प्रयास था कि जहां आप रहते हिं वहां न्याय पंचायत किस प्रकार से कार्य करता है| कभी अगले लेख में हम आपको बताएँगे कि न्याय पंचायत IPC और CPC की कौन से सेक्शन को कवर करती है और उस पर भी अपने फैसले दे सकती है|

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