आमतौर पर दहेज वधु के पास नहीं होता। दहेज वधु का होते हुए भी वो उसकी मालिक नहीं होती। दहेज देने के बावजूद भी वधू को कई बार ससुराल पक्ष से प्रताड़ना सहनी पड़ती है ऐसे में ना तो वधू के पास उसकी संपदा रह जाती है और ना सुरक्षा। ऐसी स्थिति में धारा 6 में यह प्रावधान किया गया है कि दहेज पर काबिज व्यक्ति को दहेज की संपदा 3 महीने के भीतर वधू को हस्तान्तिरित करनी चाहिये। चाहे दहेज विवाह के समय या विवाह के उपरान्त मिला हो दहेज पर काबिज व्यक्ति को दहेज वधू के नाम हस्तान्तरित करना अनिवार्य है।
यदि विवाह के समय वधू अव्यस्क है तो दहेज पर काबिज व्यक्ति वधू का न्यासी होगा और वधू के व्यस्क होते ही उसे दहेज की संपदा उस अवधि के तीन मीन के भीतर वधू के नाम हस्तान्तरित करना होगा। ऐसा ना करने पर न्यासी को न्यूनतम 6 माह का कारावास और अधिकतम दो वर्ष का कारावास की सजा दी जा सकती है साथ ही 10 हजार रूपये का जुर्माना भी किया जा सकता है। यह सजा उस सजा के अतिरिक्त रहेगी जो उस पर दहेज की माँग करने या दहेज संबंधी अन्य मामलो में मिली होगी। यदि दहेज संपदा हस्तान्तरण के पहली वधू की मृत्यु हो जाती है तो संपदा वधू के उत्तराधिकारी को हस्तान्तरिति करनी होगी।
दहेज अपराध की संज्ञेयता
कुछ लोगों की राय थी कि दहेज अपराध संज्ञेय अपराध होने चाहिये परन्त संसदीय समिति का कहना था कि वो दहेज अपराधों को संज्ञेय अपराध बनाने के पक्ष में तो है परन्तु अपराध के संज्ञेयता के दुरूपयोग से डरती है। संज्ञेय अपराध होने की स्थिति में पुलिस किसी भी व्यक्ति को संशय होने पर ही गिरफ्तार कर सकती है,ऐसा भी हो सकता है कि विवाह के समह ही पुलिस वर या उसके नातेदार को गिरफ्तार कर ले। अतः समिति ने सुझाव दिया कि किसी भी व्यक्ति को परिपीड़न से बचाने के लिये अपराध को संज्ञेय बनाने के साथ यह प्रावधान होना चाहिये कि किसी भी व्यक्ति को दहेज के आधार के संबन्ध में बिना वारंट या बिना मजिस्ट्रेट की आज्ञा के गिरफ्तार नही करना चाहिये। समिति की राय यह भी थी कि अपराध शमनीय हो।